पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१९७

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परन्तु जा न सका, गदाधरसिंह ने उसे एक लात ऐसी जमाई कि वह धम्म से जमीन पर गिर पड़ा और बोला, "मुझे क्यों मारते हो? मैंने क्या बिगाड़ा है ? मैं तो खुद यहाँ से चले जाने को तैयार हूँ !"

गदाधरसिंह ने कलमदान कमरबन्द में खोंस कर कहा, "मैं तेरे भागने को खूब समझता हूं, तू अपनी जान बचाने की नीयत से नहीं भागता, बल्कि बाहर पहरे वाले सिपाहियों को होशियार करने के लिए भागता है। खबरदार, अपनी जगह से हिला तो अभी भुट्टे की तरह तेरा सिर उड़ा दूंगा। (दारोगा से) बस, अब तुम भी अगर अपनी जान बचाना चाहते हो, तो चुपचाप बैठे रहो!"

गदाधरसिंह की डपट से दोनों हरामखोर जहाँ-के-तहाँ रह गये, अपनी जगह से हिलने या मुकाबला करने की हिम्मत न पड़ी। हम दोनों को साथ लिए हुए गदाधरसिंह उस मकान के बाहर निकल आया। दरवाजे पर कई पहरेदार सिपाही मौजूद थे, मगर किसी ने रोक-टोक न की और हम लोग तेजी के साथ कदम बढ़ाते हुए उस गली के . बाहर निकल गये। उस समय मालूम हुआ कि हम लोग जमानिया के बाहर नहीं हैं।

गली के बाहर निकल कर जबहम लोग सड़क पर पहुँचे तो दो घोड़ों का एक रथ और दो सवार दिखाई पड़े। गदाधरसिंह ने मुझको और अन्ना को रथ पर सवार करा या और आप भी उसी रथ पर बैठ गया। 'हू' करने के साथ ही रथ तेजी के साथ रवाना हआ और पीछे-पीछे दोनों सवार भी घोड़ा फेंकते हुए जाने लगे।

उस समय मेरे दिल में दो बातें पैदा हुईं, एक तो यह कि गदाधरसिंह ने दारोगा' को जीता क्यों छोड़ दिया, दूसरे यह कि हम लोगों को राजा गोपालसिंह के पास न ले जाकर कहीं और क्यों लिए जाता है ! मगर मुझे इस विषय में कुछ पूछने की आवश्यकता न पड़ी, क्योंकि शहर के बाहर निकल जाने पर गदाधरसिंह ने स्वयं मुझसे कहा, "बेटी इन्दिरा, निःसन्देह कम्बख्त दारोगा ने तुझे बड़ा ही कष्ट दिया होगा और तू सोचती होगी कि मैंने दारोगा को जीता क्यों छोड़ दिया तथा मुझे राजा गोपालसिंह के पास न ले जाकर अपने घर क्यों लिए जाता है. अतः मैं इसका जवाब इसी समय दे देना उचित समझता हूँ। दारोगा को मैंने यह सोचकर छोड़ दिया कि अभी तेरी माँ का पता लगाना है और निःसन्देह वह भी दारोगा ही के कब्जे में है जिसका पता मुझे लग चुका है, तथा राजा साहब के पास मैं तुझे इसलिए नहीं ले गया कि महल में बहुत से आदमी ऐसे हैं जो दारोगा के मेली हैं, राजा गोपालसिंह तथा मैं भी उन्हें नहीं जानता। ताज्जुब नहीं कि वहाँ पहुँचने पर तू फिर किसी नई मुसीबत में पड़ जाये।"

मैं--आपका सोचना बहुत ठीक है, मेरी मां भी महल ही में से गायब हो गई थी, तो क्या आप इस बात की खबर भी राजा गोपालसिंह को न करेंगे?

गदाधरसिंह--राजा साहब को इस मामले की खबर जरूर की जायगी, मगर अभी नहीं।

मैं--तब कब?

गदाधरसिंह--जब तेरी मां को भी कैद से छुड़ा लूंगा तब। हां, अब तू अपना हाल कहा कि दारोगा ने तुझे कैसे गिरफ्तार कर लिया और यह दाई तेरे पास कैसे