पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१९३

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वास्तव में जो कुछ अन्ना ने कहा, वही बात थी, क्योंकि जब उसने उस रूमाल को अच्छी तरह पकड़ कर अपनी तरफ खींचा, तो उसके साथ लकड़ी का तख्ता भी खिंच कर हम लोगों की तरफ चला आया और दूसरी तरफ जाने के लिए रास्ता निकल आया। हम दोनों आदमी उस तरफ चले गये और एक कमरे में पहुँचे। उस लकड़ी के तख्ते में जो पेंच पर जड़ा हुआ था और जिसे हटाकर हम लोग उस पार चले गये थे, दूसरी तरफ पीतल का एक मुट्ठा लगा हुआ था, अन्ना ने उसे पकड़ कर खींचा और वह दरवाजा जहाँ-का-तहां खट से बैठ गया। अब हम दोनों आदमी जिस कमरे में पहुंचे, वह बहुत बड़ा था। सामने की तरफ एक छोटा-सा दरवाजा नजर आया और उसके पास जाने पर मालूम हुआ कि नीचे उतर जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं। दाहिनी और बाईं तरफ की दीवार में छोटी-छोटी कई खिड़कियाँ बनी हुई थीं, दाहिनी तरफ की खिड़कियों में से एक खिड़की कुछ खुली हुई थी, मैंने और अन्ना ने उसमें झांककर देखा, तो एक मरातिब नीचे छोटा-सा चौक नजर आया, जिसमें साफ-सुथरा फर्श लगा हुआ था, ऊँची गद्दी पर कम्बख्त दारोगा बैठा हुआ था, उसके आगे एक शमादान जल रहा था और उसके पास ही एक आदमी कलम-दवात और कागज लिए बैठा हुआ था।

हम दोनों आदमी दारोगा की सूरत देखते ही चौके और डर कर पीछे हट गए। अन्ना ने धीरे से कहा, "यहाँ भी वही बला नजर आती है। कहीं ऐसा न हो कि वह कम्बख्त हम लोगों को देख ले या ऊपर चढ़ आवे।"

इतना कहकर अन्ना सीढ़ी की तरफ चली गई और धीरे से सीढ़ी का दरवाजा खींचकर जंजीर चढ़ा दी। वह चिराग जो अपने कमरे में से लेकर यहाँ तक आये थे, एक कोने में रखकर हम दोनों फिर उसी खिड़की के पास गये और नीचे की तरफ झांककर देखने लगे कि दारोगा क्या कर रहा है। दारोगा के पास जो आदमी बैठा था, उसने एक लिखा हुआ कागज हाथ में उठाकर दारोगा से कहा, "जहाँ तक मुझसे बन पड़ा, मैंने इस चिट्ठी के बनाने में बड़ी मेहनत की।"

दारोगा--इसमें कोई शक नहीं कि तुमने ये अक्षर बहुत अच्छे बनाये हैं और इन्हें देखकर कोई यकायक नहीं कह सकता कि यह सरयू का लिखा हुआ नहीं है। जब मैंने वह पत्र इन्दिरा को दिखाया, तो उसे भी निश्चय हो गया कि यह उसकी मां के हाथ का लिखा हुआ है, मगर जब गौर करके देखता हूँ, तो सरयू की लिखावट में और इसमें थोड़ा फर्क मालूम पड़ता है। इन्दिरा लड़की है, वह यह बात नहीं समझ सकती, मगर इन्द्रदेव जब इस पत्र को देखेगा तो जरूर पहचान जायेगा कि सरयू के हाथ का लिखा नहीं है, बल्कि जाल बनाया गया है।

आदमी--ठीक है, अच्छा तो मैं इसके बनाने में एक दफे और मेहनत करूँगा, क्या करूं, सरयू की लिखावट ही ऐसी टेढ़ी-मेढ़ी है कि ठीक नकल नहीं उतरती. जिसमें इस चिट्ठी में कई अक्षर ऐसे लिखने पड़े जो कि मेरे देखे हुए नहीं हैं केवल अन्दाज ही से लिखे हैं।

दारोगा--ठीक है, ठीक है, इसमें कोई शक नहीं कि तुमने बड़ी सफाई से इसे बनाया है, खैर एक दफे और मेहनत करो, और मुझे आशा है, अबकी दफे बहुत ठीक हो