पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१९२

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खुला और कई तरह की चीजें लिए हुए तीन आदमी कमरे के अन्दर आ पहुँचे। एक के हाथ में पानी का भरा बड़ा लोटा और गिलास था, दूसरा कपड़े की गठरी लिए हुए था, तीसरे के हाथ में खाने की चीजें थीं। तीनों ने सब चीजें कमरे में रख दी और पहले की रक्खी हुई चीजें और चिरागदान बगैरह उठा ले गये और जाते समय कह गये कि "तुम लोग स्नान करके खाओ पीओ, तुम्हारे मतलब की सब चीजें मौजूद हैं।"

ऐसी मुसीबत में खाना-पीना किसे सूझता है, परन्तु अन्ना के समझाने-बुझाने से जान बचाने के लिए सब-कुछ करना पड़ा। तमाम दिन बीत गया, संध्या होने पर फिर हमारे कमरे के अन्दर खाने-पीने का सामान पहुँचाया गया और चिराग भी जलाया गया मगर रात को हम दोनों ने कुछ भी न खाया।

कैदखाने से निकल भागने की धुन में हम लोगों को नींद बिल्कुल न आई। शायद आधी रात बीती होगी जब अन्ना ने उठकर कमरे का वह दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया जिस राह से वे लोग आते थे, और इसके बाद मुझे उठने और अपने साथ उस कोठरी के अन्दर चलने के लिए कहा जिसमें से कपड़े की गठरी और मेरी माँ के हाथ की लिखी हुई चिट्ठी मिली थी। मैं उठ खड़ी हुई और अन्ना के पीछे-पीछे चली। अन्ना ने चिराग हाथ में उठा लिया और धीरे-धीरे कदम रखती हुई कोठरी के अन्दर गई। मैं पहले बयान कर चुकी हूँ कि उसके अन्दर तीन कोठरियाँ थीं, एक में पायखाना बना हुआ था और दो कोठरियां खाली थीं। उन दोनों कोठरियों के चारों तरफ की दीवारें भी तख्तों की थीं। अन्ना हाथ में चिराग लिए एक कोठरी के अन्दर गई और उन लकड़ी वाली दीवारों को गौर से देखने लगी। मालूम होता था कि दीवार कुछ पुराने जमाने की बनी हुई है क्योंकि लकड़ी के तख्ते खराब हो गये थे, और कई तख्ती को घुन ने ऐसा बरबाद कर दिया था कि एक कमजोर लात खाकर भी उनका बच रहना कठिन जान पड़ता था। यह सब-कुछ था मगर जैसाकि देखने में वह खराब और कमजोर मालूम होती थी वैसी वास्तव में न थी क्योंकि दीवार की लकड़ी पाँच या छ: अंगुल से कम मोटी न होगी, जिसमें से सिर्फ अंगुल डेढ़ अंगूल के लगभग घुनी हुई थी। अन्ना ने चाहा कि लात मारकर एक दो तख्तों को तोड़ डाले मगर ऐसा न कर सकी।

हम दोनों आदमी बड़े गौर से चारों तरफ की दीवार को देख रहे थे कि यकायक एक छोटे से कपड़े पर अन्ना की निगाह पड़ी जो लकड़ी के दो तख्तों के बीच में फंसा हुआ था। वह वास्तव में एक छोटा-सा रूमाल था, जिसका आधा हिस्सा तो दीवार के उस पार था और आधा हिस्सा हम लोगों की तरफ था। उस कपड़े को अच्छी तरह देखकर अन्ना ने मुझे कहा, "बेटी, देख यहाँ एक दरवाजा अवश्य है। (हाथ से निशान बताकर) यह चारों तरफ की दरार दरवाजे को साफ बता रही है। कोई आदमी इस तरफ आया है मगर लौटकर जाती दफे जब उसने दरबाजा बन्द किया तो उसका रूमाल इसमें फंसकर रह गया। शायद अँधेरे में उसने इस बात का खयाल न किया हो, और देख इस कपड़े के फंस जाने के कारण दरवाजा भी अच्छी तरह बैठा नहीं है, ताज्जुब नहीं यह दरवाजा किसी खटके पर बन्द होता हो और तख्ता अच्छी तरह न बैठने के कारण खटका भी बन्द न हुआ हो।"

च० स०-4-12,