पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१९०

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डाली गई मगर उन लोगों को भी चुपचाप मार डालने की आज्ञा राजा साहब ने दे दी जिन्हें यह भेद मालूम हो चुका था या जिनकी बदौलत इस भेद के खुल जाने का डर था। तेरे सबब से भी लक्ष्मी देवी का भेद अवश्य खुल जाता, इसीलिए तू भी उनकी आज्ञानुसार कैद कर ली गई।"

गोपालसिंह--(क्रोध से) क्या कम्बख्त दारोगा ने तुझे इस तरह से समझाया बुझाया?

इन्दिरा--जी हाँ, और यह बात उसने ऐसे ढंग से अफसोस के साथ कही कि मुझे और मेरी अन्ना को भी थोड़ी देर के लिए उसकी बातों पर पूरा विश्वास हो गया, बल्कि वह उसके बाद भी बहुत देर तक आपकी शिकायत करता रहा।

गोपालसिंह--और मुझे वह बहुत दिनों तक तेरी बदमाशी का विश्वास दिलाता रहा था। अस्तु अब मुझे मालूम हुआ कि तू मेरा सामना करने से क्यों डरती थी। अच्छा, तब क्या हुआ?

इन्दिरा--दारोगा की बात सुनकर अन्ना ने उससे कहा कि जब आपको इन्दिरा पर दया आ रही है, तो कोई ऐसी तरकीब निकालिये जिसमें इस लड़की और इसकी मां की जान बच जाय।

दारोगा--मैं खुद इसी फिक्र में लगा हुआ हूँ। इसकी माँ को बदमाशों ने गिरफ्तार कर लिया था मगर ईश्वर की कृपा से वह बच गई, मैंने उसे उन शैतानों के हाथ से बचा लिया।

अन्ना--मगर वह लक्ष्मीदेवी को पहचानती है, और उसकी बदौलत लक्ष्मीदेवी का भेद खुल जाना सम्भव है।

दारोगा--हाँ, ठीक है, मगर इसके लिए भी मैंने एक बन्दोबस्त कर लिया है।

अन्ना--वह क्या?

दारोगा--(एक चिट्ठी दिखाकर) देख, सरयू से मैंने यह चिट्ठी लिखवा ली है, पहले इसे पढ़ ले।

मैंने और अन्ना ने वह चिट्ठी पढ़ी। उसमें यह लिखा हुआ था-'मेरी प्यारी लक्ष्मी, मुझे इस बात का बड़ा अफसोस है कि तेरे ब्याह के समय मैं नहीं आ सकी ! इसका बहुत बड़ा कारण था जो मुलाकात होने पर तुमसे कहूँगी, मगर अपनी बेटी इन्दिरा की जुबानी यह सुनकर मुझे बड़ी खुशी हुई कि वह विवाह के समय तेरे पास थी, बल्कि ब्याह होने के एक दिन बाद तक तेरे साथ खेलती रही।"

जब मैं चिट्ठी पढ़ चुकी तो दारोगा ने कहा कि बस अब तू भी एक चिट्ठी लक्ष्मीदेवी के नाम से लिख दे और उसमें यह लिखा कि "मुझे इस बात का रंज है कि तेरी शादी होने के बाद एक दिन से ज्यादा मैं तेरे पास न रह सकी मगर मैं तेरी उस छवि को नहीं भल सकती जो ब्याह के दूसरे दिन देखी थी।" मैं ये दोनों चिट्ठियाँ राजा गोपालसिंह को दंगा और तुम दोनों को छोड़ देने के लिए उनसे जिद करके उन्हें समझा दंगा कि "अब सरय और इन्दिरा की जुबानी लक्ष्मीदेवी का भेद कोई नहीं सुन सकता, अगर ये दोनों कुछ कहेंगी तो इन चिट्ठियों के मुकाबले में स्वयं झूठी बनेंगी।"