पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१८९

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का क्या हाल होगा?

मैं--ठीक है, दारोगा मुझ कभी न छोड़ेगा।

अन्ना--बेशक कभी न छोड़ेगा। वह कम्बख्त तो अब तक तुझे मार डाले होता, मगर अब निश्चय हो गया कि उसे तुम दोनों से अपना कुछ मतलव निकालना है इसीलिए अभी तक कैद किए हुए है, जिस दिन उसका काम हो जायगा उसी दिन तुम दोनों को मार डालेगा। जब तक उसका काम नहीं होता तभी तक तुम दोनों की जान बची है। (चिट्ठी की तरफ इशारा करके) यह चिट्ठी उसने इसी चालाकी से लिखवाई है जिससे तू उसका काम जल्द कर दे।

मैं--अन्ना, तू सच कहती है, अब मैं दारोगा का काम न करूँगी चाहे जो हो।

अन्ना--अगर तु मेरे कहे मुताबिक करेगी तो निःसन्देह तुम दोनों का जान बच रहेगी और किसी-न-किसी दिन तुम दोनों को कैद से छुट्टी भी मिल जायगी।

मैं--बेशक जो तू कहेगी, वही मैं करूँगी।

अन्ना--मगर मैं डरती हूँ कि अगर दारोगा तुझे धमकायेगा या मारे-पीटेगा तो तू मार खाने के डर से उसका काम जरूर कर देगी।

मैं--नहीं-नहीं, कदापि नहीं। अगर वह मेरी बोटी-बोटी भी काटकर फेंक दे तो भी मैं तेरे कहे बिना उसका कोई भी काम न करूंगी।

अन्ना--ठीक है, मगर इसके साथ ही यह भी न कह देना कि यदि अन्ना कहेगी तो मैं तेरा काम कर दूंगी।

मैं--नहीं सो तो न कहूँगी, मगर कहूँगी क्या सो तो बताओ!

अन्ना--बस जहाँ तक हो टालमटोल करती जाना। आजकल करते-करते दोतीन दिन टाल जाना चाहिए, मुझे आशा है कि इस बीच में हम लोग छूट जायेंगे।

सूबह की सुफेदी खिड़कियों में दिखाई देने लगी और दरवाजा खोलकर दारोगा कमरे के अन्दर आता हुआ दिखाई दिया, वह सीधे आकर बैठ गया और बोला "इन्दिरा, त समझती होगी कि दारोगा साहब ने मेरे साथ दगाबाजी की और मुझे गिरफ्तार कर लिया. मगर मैं धर्म की कसम खाकर कहता हूँ कि वास्तव में यह बात नहीं है, बल्कि सच तो यह है कि स्वयं राजा गोपालसिंह तेरे दुश्मन हो रहे हैं। उन्होंने मुझे हुक्म दिया था कि इन्दिरा को गिरफ्तार करके मार डालो, और उन्हीं की आज्ञानुसार मैं उनके कमरे में बैठा हुआ गिरफ्तार करने की तरकीब सोच रहा था कि यकायक तू आ गई और मैंने तुझे गिरफ्तार कर लिया। मैं लाचार हूँ कि राजा साहब का हुक्म टाल नहीं सकता मगर साथ ही इसके जब तुझे मारने का इरादा करता हूँ तो मुझे दया आ जाती है और तेरी जान बचाने की तरकीब सोचने लगता हूँ। तुझे इस बात का ताज्जुब होगा कि गोपालसिंह तेरे दुश्मन क्यों हो गये, मगर मैं तेरा यह शक भी मिटाये देता हैं। असल बात यह है कि राजा साहब को लक्ष्मीदेवी के साथ शादी करना मंजूर न था और जिस खूबसूरत औरत के साथ वे शादी करना चाहते थे वह विधवा हो चुकी थी और लोगों की जानकारी में वे उसके साथ शादी नहीं कर सकते थे। इसलिए लक्ष्मीदेवी के बदले में यह दूसरी औरत उलट फेर कर दी गई। उनकी आज्ञानुसार लक्ष्मीदेवी तो मार