पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१८६

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टूटी हुई इमारत की भी मरम्मत हो चुकी है और अब वह खंडहर नहीं मालूम होता। भीतर की इमारत का का काम बिल्कुल खत्म हो चुका है, केवल बाहरी हिस्से में कुछ काम लगा हुआ है वह भी दस-पन्द्रह दिन से ज्यादे का काम नहीं है। जिस समय बलभद्रसिंह को लिए भूतनाथ वहाँ पहुँचा, उस समय जीत सिंह भी वहाँ मौजूद थे और पन्नालाल, रामनारायण और बद्रीनाथ को साथ लिए हुए फाटक के वाहर टहल रहे थे। पन्नालाल, रामनारायण और पण्डित बद्रीनाथ तो भूतनाथ को बखूबी पहचानते थे, हाँ जीतसिंह ने शायद उसे नहीं देखा था मगर तेजसिंह ने भूतनाथ की तस्वीर अपने हाथ से तैयार करके जीतसिंह और सुरेन्द्रसिंह के पास भेजी थी और उसकी विचित्र घटना का समाचार भी लिखा था।

भूतनाथ को दूर से आते हुए देखकर पन्नालाल ने जीतसिंह से कहा, "देखिए, भूतनाथ चला आ रहा है।"

जीतसिंह--(गौर से भूतनाथ को देखकर) मगर यह दूसरा आदमी उसके साथ कौन है?

पन्नालाल--मैं इस दूसरे को तो नहीं पहचानता।

जीतसिंह--(बद्रीनाथ से) तुम पहचानते हो?

इतने में भूतनाथ और बलभद्रसिंह भी वहाँ पहँच गये। भूतनाथ ने घोड़े पर से उतरकर जीतसिंह को सलाम किया क्योंकि वह जीतसिंह को बखूबी पहचानता था, इसक बाद धीरे से बलभद्रसिंह को भी घोड़े से नीचे उतारा और जीतसिंह की तरफ इशारा करके कहा, "यह तेजसिंह के पिता जीतसिंह हैं।" और दूसरे ऐयारों का भी नाम बताया। बलभद्र सिंह का भी परिचय सभी को देकर भूतनाथ ने जीतसिंह से कहा, "यही बलमसिंह हैं जिनका पता लगाने का बोझ मुझ पर डाला गया था। ईश्वर ने मेरी जन रख ली और मेरे हाथों इन्हें कैद से छुड़ा दिया ! आप तो सब हाल सुन ही चुके होंगे?"

जीतसिंह--हाँ, मुझे सब हाल मालूम है, तुम्हारे मुकदमे ने तो हम लोगों का दिल अपनी तरफ ऐसा खींच लिया कि दिन-रात उसी का ध्यान बना रहता है, मगर तुम यकायक इस तरफ कैसे आ निकले और इन्हें कहाँ पाया?

भतनाथ--मैं इन्हें काशीपुरी से छुड़ाकर लिए आ रहा है, दुश्मनों के खौफ से दक्खिन दबता हुआ चक्कर देकर आना पड़ा इसीसे अब यहाँ पहुँचने की नौबत आई, नहीं व तक कब का चुनार पहुँच गया होता। राजा वीरेन्द्रसिंह की सवारी चुनार की नाम रवाना हो गई थी इसलिए मैं भी इन्हें लेकर सीधे चुनार ही आया।

जीतसिंह--बहुत अच्छा किया कि यहाँ चले आये। कल राजा वीरेन्द्रसिंह भी यहाँ पहँच जायँगे और उनका डेरा भी इसी मकान में पड़ेगा। किशोरी, कामिनी और कमला वाला हृदय-विदारक समाचार तो तुमने सुना ही होगा?

भूतनाथ--(चौंककर) क्या-क्या? मुझे कुछ भी नहीं मालूम!

जीतसिंह--(कुछ सोचकर) अच्छा, आप लोग जरा आराम कर लीजिये तो हाल कहेंगे क्योंकि बलभद्रसिंह कैद की मुसीबत उठाने के कारण बहुत सुस्त और कम-