पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१८५

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मेरी सहायता भी करेंगे।

बलभद्रसिंह--मैं सहायता करने योग्य तो नहीं हूँ, मगर हाँ, यदि कुछ कर सकूँगा तो अवश्य करूंगा।

भूतनाथ--इत्तिफाक से राजा वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों ने जैपालसिंह को गिरफ्तार कर लिया है. जो आपकी सूरत बनाकर वहाँ लक्ष्मीदेवी को धोखा देने गया था। जब उसे अपने बचाव का कोई ढंग न सूझा तो उसने आपके मार डालने का दोष मुझ पर लगाया। मैं स्वप्न में भी नहीं सोच सकता था कि आप जीते हैं। परन्तु ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए कि यकायक आपके जीते रहने का शक मुझे हुआ और धीरे-धीरे वह पक्का होता गया तथा मैं आपकी खोज करने लगा। अब आशा है कि आप स्वयं मेरी तरफ से जैपालसिंह का मुंह तोड़ेंगे।

बलभद्रसिंह--(क्रोध से) जैपाल मेरे मारने का दोष तुम पर लगाकर आप बचाना चाहता है?

भूतनाथ--जी हाँ।

बलभद्रसिंह--उसकी ऐसी की तैसी ! उसने तो मुझे ऐसी-ऐसी तकलीफें दी हैं कि मेरा ही जी जानता है। अच्छा, यह वताओ, इधर क्या-क्या मामले हुए और राजा वीरेन्द्रसिंह को जमानिया तक पहुँचने की नौबत क्यों आई?

भूतनाथ ने जब से कमलिनी की ताबेदारी कबूल की थी, कुल हाल कुंअर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह, मायारानी, दारोगा, कमलिनी, दिग्विजयसिंह और राजा गोपालसिंह वगैरह का बयान किया मगर अपने और जैपाल सिंह के मामले में कुछ घटा-बढ़ा कर कहा। बलभद्रसिंह ने बड़े गौर और ताज्जुब से सब बातें सुनीं और भूतनाथ की खैरख्वाही तथा मर्दानगी की बड़ी तारीफ की। थोड़ी देर तक और बातचीत होती रही। इसके बाद दोनों आदमी घोड़ों पर सवार हो चुनारगढ़ की तरफ रवाना हुए और पहर भर के वाद उस तिलिस्म के पास पहुँचे जो चुनारगढ़ से थोड़ी दूर पर था और जिसे राजा वीरेन्द्रसिंह ने फतह किया (तोड़ा) था।

काशी से चुनारगढ़ बहुत दूर न होने पर भी इन दोनों को वहाँ पहुँचने में देर हो गई। एक तो इसलिए कि दुश्मनों के डर से सदर राह छोड़ भूतनाथ चक्कर देता हआ गया था। दूसरे रास्ते में ये दोनों बहुत देर तक अटके रहे। तीसरे कमजोरी के सबब से बलभद्रसिंह घोड़े को तेज चला भी नहीं सकते थे।

पाठक, इस तिलिस्मी खंडहर की अवस्था आज दिन वैसी नहीं है जैसी आपने पहले देखी जब राजा वीरेन्द्रसिंह ने इस तिलिस्म को तोड़ा था। आज इसके चारों तरफ राजा सुरेन्द्रसिंह की आज्ञानुसार बहुत-बड़ी इमारत बन गई है और अभी तक बन रही है। इस इमारत को जीतसिंह ने अपने ढंग का बनवाया था। इसमें बड़े-बड़े तहखाने, सुरंग और गुप्त कोठरियाँ, जिनके दरवाजों का पता लगाना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव था, बनकर तैयार हुई हैं और अच्छे-अच्छे कमरे, सहन, बालाखाने इत्यादि जीतसिंह की बुद्धिमानी का नमूना दिखा रहे हैं। बीच में एक बहुत-बड़ा रमना छूटा हुआ है जिसके बीचोंबीच में तो वह खंडहर है और उसके चारों तरफ बाग लग रहा है। खंडहर की