पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१८४

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बलभद्रसिंह--सबूत तो मेरे पास कोई भी नहीं। मगर मायारानी के दारोगा और जैपाल की जुबानी मैंने तुम्हारे विषय में बड़ी-बड़ी बातें सुनी थीं और कुछ दूसरे जरिये से भी मालूम हुआ है।

भूतनाथ--अब तो बस, या तो आप दुश्मनों की बातों को मानिए या मेरी इस खैरख्वाही को देखिए कि कितनी मुश्किल से आपका पता लगाया और किस तरह जान पर खेल कर आपको छुड़ा ले चला हूँ।

बलभद्रसिंह--(लम्बी साँस लेकर) खैर जो हो, आज यदि तुम्हारी बदौलत मैं किसी तरह की तकलीफ न पाकर अपनी तीनों लड़कियों से मिलूंगा तो तुम्हारा कसूर यदि कुछ हो तो मैं माफ करता हूँ।

भूतनाथ--इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। लीजिए, यह जगह बहुत अच्छी है, घने पेड़ों की छाया है और पगडण्डी से बहुत हटकर भी है!

बलभद्रसिंह--ठीक तो है, अच्छा तुम उतरो और मुझे भी उतारो।

दोनों ने घोड़ा रोका, भूतनाथ घोड़े से नीचे उतर पड़ा और उसकी बागडोर एक डाल से अड़ाने के बाद धीरे-से बलभद्रसिंह को भी नीचे उतारा। जीनपोश बिछा कर उन्हें आराम करने के लिए कहा और तब दोनों घोड़ों की पीठ खाली करके लम्बी बागडोर के सहारे एक पेड़ के साथ बाँध दिया जिसमें वे भी लोट-पोट कर थकावट मिटा ले और घास चरें।

यहाँ पर भूतनाथ ने बलभद्रसिंह की बड़ी खातिर की। ऐयारी के बटुए में से उस्तरा निकाल कर अपने हाथ से उनकी हजामत बनाई, दाढ़ी मंडी, कैची लगा कर सिर के बाल दुरुस्त किए, इसके बाद स्नान कराया और बदलने के लिए यज्ञोपवीत दिया। आज बहुत दिनों के बाद बलभद्रसिंह ने चश्मे के किनारे बैठकर संध्या-वन्दन किया और देर तक सूर्य भगवान की स्तुति करते रहे। जब सब तरह से दोनों आदमी निश्चिन्त हुए तो भतनाथ ने खुर्जी में से कुछ मेवा निकाल कर खाने के लिए बलभद्रसिंह को दिया आर आप भी खाया। बलभद्रसिंह को निश्चय हो गया कि भूतनाथ मेरे साथ दुश्मनी नहीं करता और उसने नेकी की राह से मुझे भारी कैदखाने से छुड़ाया है।

बलभद्रसिंह--गदाधरसिंह, शायद तुमने थोड़े ही दिनों से अपना नाम भूतनाथ रखा है?

भूतनाथ--जी हाँ, आज कल मैं इसी नाम से मशहूर हूँ।

बलभद्रसिंह--अस्तु, मैं बड़ी खुशी से तुम्हें धन्यवाद देता हूँ, क्योंकि अब मुझे निश्चय हो गया कि तुम मेरे दुश्मन नहीं हो।

भतनाथ--(धन्यवाद के बदले में सलाम करके) मगर मेरे दुश्मनों ने मेरी तरफ से आपके कान बहुत भरे हैं और वे बातें ऐसी हैं कि यदि आप राजा वीरेन्द्रसिंह के सामने उन्हें कहेंगे तो मैं उनकी आँखों से उतर जाऊँगा।

बलभद्रसिंह--नहीं-नहीं, मैं प्रतिज्ञापूर्वक कहता हूँ कि तुम्हारे विषय में कोई ऐसी बात किसी के सामने न कहूँगा, जिससे तुम्हारा नुकसान हो।

भूतनाथ--(पुनः सलाम करके) और मैं आशा करता हूँ कि समय पड़ने पर आप