पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१७९

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देखने और पढ़ने लगा यहाँ तक कि सब कागज देख गया और शमादान में लगा-लगा कर सब जला के खाक कर दिये। इसके बाद एक सन्दूकड़ी निकाली जिसमें ताला लगा हुआ था। इस सन्दूकड़ी में भी वागज भरे हुए थे, भूतनाथ ने उन कागजों को भी जला दिया। इसके बाद फिर आलमारी में ढूंढ़ना शुरू किया मगर और कोई चीज उसके काम की न निकली।

भूतनाथ ने अब उस दूसरी आलमारी का कब्जा भी खंजर से काट डाला और अन्दर की चीजों को ध्यान देकर देखना शुरू किया। इस आलमारी में यद्यपि बहुत-सी चीजें भरी हुई थीं मगर भूतनाथ ने केवल तीन चीजें उसमें से निकाल लीं। एक तो दसबारह पन्ने की छोटी-सी किताब थी जिसे पाकर भूतनाथ बहुत खुश हुआ और चिराग के सामने जल्दी-जल्दी पलट कर दो-तीन पन्ने पढ़ गया, दूसरा एक ताली का गुच्छा था, भूतनाथ ने उसे भी ले लिया, और तीसरी चीज एक हीरे की अंगूठी थी जिसके साथ एक पुर्जा भी बंधा हुआ था। यह अंगूठी एक डिविया के अन्दर रक्खी हुई थी। भूतनाथ ने अँगूठी में से पुर्जा खोलकर पढ़ा और इसके पाने से बहुत प्रसन्न होकर धीरे से बोला, "बस, अब मुझे और किसी चीज की जरूरत नहीं है।"

इन कामों से छुट्टी पाकर भूतनाथ बेगम के पास आया जो अभी तक बेहोश पड़ी हुई थी और उसकी तरफ देखकर बोला, "अब यह मेरा कुछ बिगाड़ नहीं सकती, ऐसी अवस्था में एक औरत के खून से हाथ रँगना व्यर्थ है।"

भूतनाथ हाथ में शमादान लिए निचले खण्ड में उतर गया जहां उसके साथी दो आदमी हाथ में नंगी तलवार लिये हुए मौजूद थे। उसने अपने साथियों की तरफ देख कर कहा, "बस हमारा काम हो गया। बलभद्रसिंह इसी मकान में कैद है, उसे निकाल कर यहाँ से चल देना चाहिए।" इतना कहकर भूतनाथ ने शमादान अपने एक साथी के हाथ में दे दिया और एक कोठरी के दरवाजे पर जा खड़ा हुआ जिसमें दोहरा ताला लगा हुआ था। तालियों का गुच्छा जो ऊपर से लाया था, उसी में से ताली लगा कर ताला खोला और अपने आदमियों को साथ लिए हुए कोठरी के अन्दर घुसा। वह कोठरी खाली थी मगर उसमें से एक दूसरी कोठरी में जाने के लिए दरवाजा था और उसकी जंजीर में भी ताला लगा हुआ था। ताली लगा कर उस ताले को भी खोला और दूसरी कोठरी के अन्दर गया। इसी कोठरी में लक्ष्मी देवी, कमलिनी और लाड़िली का बाप वलभद्रसिंह कैद था।

दरवाजा खोलते समय जंजीर खटकने के साथ ही बलभद्रसिंह चैतन्य हो गया था। जिस समय उसकी निगाह यकायक भूतनाथ पर पड़ी वह चौंक उठा और ताज्जुबभरी निगाहों से भूतनाथ को देखने लगा। भूतनाथ ने भी ताज्जुब की निगाह से बलभद्रसिंह को देखा और अफसोस किया, क्योंकि बलभद्रसिंह की अवस्था बहुत ही खराब हो रही थी, शरीर सूख के काँटा हो गया था, चेहरे पर और बदन में झुर्रियां पड़ गई थीं, सिर, मूंछ और दाढ़ी के बाल तथा नाखून इतने बढ़ गये थे कि जंगली मनुष्य में और उसमें कुछ भी भेद न जान पड़ता था, अँधेरे में रहते-रहते कुल बदन पीला पड़ गया था, सूरत-शक्ल से भी बहुत ही डरावना मालूम पड़ता था। एक कम्बल, मिट्टी की ठिलिया,