पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१७८

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बेगम-- क्या अब मैं अगर राजा वीरेन्द्रसिंह के यहाँ तुम पर नालिश करूँ तो मेरा मुकदमा सुना न जायगा और तुम साफ छूट जाओगे!

भूतनाथ--मगर अब तुम्हें राजा वीरेन्द्रसिंह के सामने पहुँचने ही कौन देगा?

बेगम--(क्रोध से) रोकेगा ही कौन?

भूतनाथ--गदाधरसिंह, जो तुम्हें अच्छी तरह सता चुका है और आज फिर सताने के लिए आया है!

बेगम--(क्रोध को पचाकर और कुछ सोचकर) मगर यह तो बताओ कि तुम बिना इत्तिला कराये यहाँ चले क्यों आये ? और पहरे वाले सिपाहियों ने तुम्हें आने कैसे दिया?

भूतनाथ--तुम्हारे दरवाजे पर कौन है जिसकी जुबानी मैं इत्तिला करवाता या जो मुझे यहां आने से रोकता?

बेगम--क्या पहरे के सिपाही सब मर गये ?

भूतनाथ--मर ही गये होंगे !

बेगम--क्या सदर दरवाजा खुला हुआ और सुनसान है ?

भूतनाथ–-सुनसान तो है मगर खुला हुआ नहीं है, कोई चोर न घस आवे इस खयाल से आते समय मैं सदर दरवाजा भीतर से वन्द करता आया हूँ। डरो मत, कोई तुम्हारी रकम उठाकर न ले जायगा।

बेगम--(मन-ही-मन चिढ़ के) जमालो, जरा नीचे जाकर देख तो सही कम्बख्त सिपाही सब क्या कर रहे हैं।

भूतनाथ--(जमालो से) खबरदार, यहाँ से उठना मत, इस समय इस मकान में मेरी हुकूमत है, बेगम या जयपाल की नहीं ! (बेगम से) अच्छा, अब सीधी तरह से बता दो कि बलभद्रसिंह को कहाँ पर कैद कर रक्खा है ?

बेगम--मैं बलभद्रसिंह को क्या जानूं?

भूतनाथ--तो अभी किसको लेकर राजा वीरेन्द्रसिंह के पास जाने के लिए तैयार हो गई थी।

बेगम--तेरे बाप को लेकर जाने वाली थी!

इतना सुनते ही भूतनाथ ने कस के चपत बेगम के गाल पर जमाई जिससे वह तिलमिला गई और कुछ ठहरने के बाद तकिये के नीचे से छरा निकालकर भूतनाथ पर झपटी। भूतनाथ ने बाएं हाथ से उसकी कलाई पकड़ ली और दाहिने हाथ से तिलिस्मी खंजर निकाल कर उसके बदन में लगा दिया, साथ ही इसके फुर्ती से नौरतन और जमालो के बदन में भी तिलिस्मी खंजर लगा दिया जिससे बात-की-बात में तीनों बेहोश होकर जमीन पर लम्बी हो गई। इसके बाद भूतनाथ ने बड़े गौर से चारों तरफ देखना शुरू किया। इस कमरे में दो आलमारियाँ थीं जिनमें बड़े-बड़े ताले लगे हुए थे, भूतनाथ ने तिलिस्मी खंजर मार कर एक आलमारी का कब्जा काट डाला और आलमारी खोल कर उसके अन्दर की चीजें देखने लगा। पहले एक गठरी निकाली, जिसमें बहुत से कागज बँधे हुए थे। शमादान के सामने वह गठरी खोली और एक-एक करके कागज