पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१६९

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बिदा होने की आज्ञा मांगता है।"

इन्द्रदेव को देखकर तीनों बहिनें उठ खड़ी हुईं और कमलिनी ने भूतनाथ को भी अपने सामने फर्श पर बैठने का इशारा किया। भूतनाथ बैठ गया तो बातें होने लगीं--

कमलिनी--(भूतनाथ से) भूतनाथ, तुम्हारे मामले ने तो हम दोनों को बहुत परेशान कर रखा है। पहले तो यही विश्वास हो गया था कि तुम ही मेरे पिता के घातक हो और यह जयपालसिंह वास्तव में हमारा पिता है, वह खयाल तो अब जाता रहा, मगर तुम अभी तक बेकसूर साबित न हुए।

भूतनाथ--कसूरवार तो मैं जरूर हूँ, पहले ही तुमसे कह चुका हूँ कि 'मेरे हाथ से कई बुरे काम हो चुके हैं, जिनके लिए मैं अब भी पछता रहा हूँ और अब नेक काम करके दुनिया में नेक नाम होना चाहता हूँ और तुमने मेरी सहायता करने की प्रतिज्ञा भी की थी। तब से तुम स्वयं देख रही हो कि मैं कैसे-कैसे काम कर रहा हूँ। यह सब कुछ है। मगर मैंने तुम्हारे पिता, माता या तुम तीनों बहिनों के साथ कभी कोई बुराई नहीं की, इसे तुम निश्चय समझो, शायद यही सबब है कि ऐसे नाजुक समय में भी कृष्ण जिन्न ने मेरी सहायता की, मालूम होता है कि वह मेरा हाल अच्छी तरह जानता है।

कमलिनी--खैर, यह तो जब तुम्हारा मुकदमा होगा, तब मालूम हो जायगा, क्योंकि मैं विल्कुल नहीं जानती कि कृष्ण जिन्न कौन है, उसने तुम्हारा पक्ष क्यों लिया, और राजा वीरेन्द्रसिंह ने क्यों कृष्ण जिन्न की बात मानकर तुम्हें कैद से छुट्टी दे दी।

लक्ष्मीदेवी-(भूतनाथ से) मगर मैं जहाँ तक समझती हूँ यही जान पड़ता है कि तुम कृष्ण जिन्न को अच्छी तरह पहचानते हो।

भूतनाथ-नहीं-नहीं, कदापि नहीं। (खंजर हाथ में लेकर) मैं कसम खाकर कहता हूँ कि कृष्ण जिन्न को बिल्कुल नहीं पहचानता, मगर उसकी कुदरत देखकर जरूर आश्चर्य करता हूँ और उससे डरता भी हूँ। यद्यपि उसने मुझे कैद से छुड़ा दिया, मगर तुम देखती हो कि भागकर जान बचाने की नीयत मेरी नहीं है। कई दफे स्वतन्त्र हो जाने पर भी मैंने तुम्हारे काम से मुंह नहीं फेरा और समय पड़ने पर जान तक देने को तैयार हो गया।

कमलिनी--ठीक है, ठीक है ! और अबकी दफे रोहतासगढ़ में पहुँचकर भी तुमने बड़ा काम किया, मगर इस बारे में मुझे एक बात का आश्चर्य मालूम होता है।

भूतनाथ--वह क्या ?

कमलिनी--तुमने अपना हाल बयान करते समय कहा था कि 'मैंने तिलिस्मी खंजर से शेरअलीखाँ की सहायता की थी।'

भूतनाथ--हाँ, बेशक कहा था।

कमलिनी--तुम्हें जो तिलिस्मी खंजर मैंने दिया था, वह तो मायारानी ने उस समय अपने कब्जे में कर लिया था जब जमानिया तिलिस्म के अन्दर जाने वाली सुरंग में उसने तुम लोगों को बेहोश किया था। उसने राजा गोपालसिंह का भी तिलिस्मी खंजर लेकर नागर को दे दिया था। नागर वाला तिलिस्मी खंजर तो भैरोंसिंह ने (इन्द्रदेव की तरफ इशारा कर) आपसे ले लिया था जो मेरी इच्छानुसार अब तक 'भैरोंसिंह