घोड़ा दौड़ाता हुआ वीरेन्द्रसिंह के लश्कर की तरफ आ रहा था। दोनों की निगाहें उसी की तरफ उठ गईं और उसे बड़े गौर से देखने लगे। थोड़ी ही देर में वह सवार टीले के पास पहुंच गया और उस समय उस सवार की भी निगाह राजा वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह पर पड़ी। सवार ने तुरत घोड़े का मुंह फेर दिया और बात-की-बात में राजा वीरेन्द्रसिंह के पास पहुँचकर घोड़े से नीचे उतर पड़ा। जिस टीले पर वे दोनों खड़े थे वह बहुत ऊँचा न था अतएव उस सवार ने नेजा गाड़कर घोड़े की लगाम उसमें अटका दी और बेखौफ टीले के ऊपर चढ़ गया। इस सवार के हाथ में एक चिट्ठी थी जो उसने सलाम करने के बाद राजा वीरेन्द्रसिंह को दे दी। राजा साहब ने चिट्ठी खोलकर बड़े गौर से पढ़ी और तेजसिंह के हाथ में दे दी। तेजसिंह ने भी उसे पढ़ा और राजा साहब की तरफ देखकर कहा, "निःसन्देह ऐसा ही है।"
वीरेन्द्रसिंह--तुमने तो इस विषय में मुझसे कुछ भी नहीं कहा था।
तेजसिंह--कुछ कहने की आवश्यकता न थी और अभी मैं इन बातों का निश्चय ही कर रहा था।
वीरेन्द्रसिंह--इस राय को तो मैं पसन्द करता हूँ। तेजसिंह-राय पसन्द करने योग्य है और इसका जवाब भी लिख देना चाहिए।
वीरेन्द्रसिंह--हाँ, इसका जवाब लिख दो।
"बहुत अच्छा" कहकर तेजसिंह ने अपनी जेब से जस्ते की एक कलम निकाली और उस चिट्ठी की पीठ पर जवाब लिखकर वीरेन्द्रसिंह को दिखाया। राजा साहब ने उसे पसन्द किया और चिट्ठी उसी सवार के हाथ में दे दी गई। सवार सलाम करके टीले से नीचे उतर आया और घोड़े पर सवार हो उसी तरफ चला गया जिधर से आया था। सवार के चले जाने के बाद राजा वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह भी टीले से नीचे उतरे और गुप्त विषय पर बातें करते हुए लश्कर की तरफ रवाना होकर थोड़ी ही देर में अपने खेमे के अन्दर जा पहुँचे।
इस सफर में राजा वीरेन्द्रसिंह का कायदा था कि दिन-रात में एक दफे किसी समय किशोरी और कामिनी के डेरे में जरूर जाते, थोड़ी देर बैठते और हर तरह के ऊँच-नीच समझा-बुझाकर तथा दिलासा देकर अपने डेरे में लौट आते। इसी तरह उन दोनों के पास दो दफे तेजसिंह के जाने का भी मामूल था। जिस समय किशोरी और कामिनी के पास राजा साहब या तेजसिंह जाते, उस समय प्रायः सब लौंडियाँ अलग कर दी जातीं, केवल कमला उन दोनों के पास रह जाती थी। आज भी टीले पर से लौटने के बाद थोड़ी देर दम लेकर राजा वीरेन्द्रसिंह किशोरी और कामिनी के खेमे में गये और दो घड़ी तक वहाँ बैठे रहे, कुल लौंडियां हटा दी गई थीं।
दो घड़ी तक वहाँ ठहरने के बाद राजा साहब अपने खेमे में लौट आये और तेजसिंह के साथ बैठकर तरह-तरह की बातें करने लगे। जब रात ज्यादा चली गई तो राजा साहब ने चारपाई की शरण ली। तेजसिंह भी अपने खेमे में चले गये और खापीकर सो रहे।
तेजसिंह को चारपाई पर गये अभी आधा घण्टा भी न बीता था कि चोबदार