मैं नकली बलभद्रसिंह को तुम्हारे हवाले करने के लिए तैयार हूँ। मैं तुम पर भी बहुत विश्वास रखता हूँ और तुम्हें अपना समझता हूँ। अगर कृष्ण जिन्न ने न भी लिखा होता और तुम नकली बलभद्रसिंह को मांगते तो भी मैं तुम्हें दे देता, अब भी अगर तुम मायारानी या दारोगा को लेना चाहो तो मैं देने को तैयार हूँ, केवल इतना ही नहीं, इसके अतिरिक्त तुम अगर और भी कोई बात कहो तो करने के लिए तैयार हूं।
राजा वीरेन्द्रसिंह की बात सुनकर इन्द्रदेव उठ खड़ा हुआ और झुककर सलाम करने के बाद हाथ जोड़ कर बोला, "यह जानकर बहुत ही प्रसन्न हुआ कि महाराज मुझ पर विश्वास रखते हैं और नकली बलभद्रसिंह को मेरे हवाले करने के लिए तैयार हैं तथा और भी जिसे मैं चाहूँ ले जाने की प्रार्थना कर सकता हूँ। यदि महाराज की मुझ पर इतनी ही कृपा है तो मैं कह सकता हूँ कि सिवाय नकली बलभद्रसिंह के और किसी कैदी को ले जाना नहीं चाहता, मगर लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाड़िली को अपने साथ ले जाने की प्रार्थना करता हूँ। अपनी धर्म की प्यारी लड़की लक्ष्मीदेवी पर बहुत स्नेह रखता हूँ और अभी बहुत कुछ उसके हाथ से (रुककर) हाँ, तो यदि महाराज मुझ पर विश्वास कर सकते हैं, तो इन लोगों को और उस कलमदान को मुझे दे दें, जिस पर 'इन्दिरा' लिखा हुआ है। भूतनाथ के कागजात अपने साथ लेते जायें, मैं असली बलभद्रसिंह का पता लगाकर सेवा में उपस्थित हो जाऊँगा और उस समय अपने सामने भूतनाथ के मुकदमे का फैसला कराऊँगा। आप भूतनाथ को आज्ञा दें कि कृष्ण जिन्न ने उसके विषय में जो कुछ लिखा है उसे नेकनीयती के साथ पूरा करें।"
इन्द्रदेव की बात सुनकर राजा वीरेन्द्रसिंह गौर में पड़ गये। वे लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाड़िली को अपने साथ चुनार ले जाना चाहते थे और कृष्ण जिन्न ने भी ऐसा करने को लिखा था, मगर इन्द्रदेव की अर्जी भी नामंजूर नही कर सकते थे क्योंकि इन्द्रदेव का लक्ष्मीदेवी पर हक था और उसी ने लक्ष्मीदेवी की रक्षा की थी। कमलिनी और लाडिली पर राजा वीरेन्द्रसिंह का कोई अधिकार न था क्योंकि वे बिल्कुल स्वतन्त्र थीं। वीरेन्द्रसिंह ने कुछ देर तक गौर करने के बाद इन्द्रदेव से कहा, "मुझे कुछ उज्र नहीं है, लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाड़िली यदि आपके साथ रहने में प्रसन्न हैं तो आप उन्हें ले जायें और वह कलमदान भी आपको मिल जायेगा।"
इन्द्रदेव और राजा वीरेन्द्रसिंह की बातें सुनकर लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाडिली बहुत प्रसन्न हुईं और हाथ जोड़कर राजा वीरेन्द्रसिंह से बोली, "हम लोग अपने धर्म के पिता इन्द्रदेव के घर जाने में बहुत प्रसन्न हैं, वहां हमें अपने बाप का पता लगने का हाल बहुत जल्द मिलेगा।"
वीरेन्द्र सिंह--बहुत अच्छा, (तेजसिंह से) वह कलमदान इन्द्रदेव को दे दो और इन लोगों के तथा नकली बलभद्रसिंह के जाने का बन्दोबस्त करो। हम भी आज चुनारगढ़ की तरफ कूच करेंगे। भैरोंसिंह को मनोरमा की गिरफ्तारी के लिए रवाना करो और तारासिंह को नानक के घर भेजो। (देवीसिंह की तरफ देखकर) एक बहुत ही नाजुक काम तुम्हारे सुपुर्द करने की इच्छा है जो तुम्हारे कान में कहेंगे।
देवीसिंह राजा वीरेन्द्रसिंह के पास चले गये और उनकी तरफ सिर झुका दिया।