पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१५१

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जिस राह से तुम आई हो उस कोठरी का दरवाजा इन्द्रदेव खोल देंगे, तेजसिंह और बीरूसिंह को मैं थोड़ी देर के लिए अपने साथ लिए जाता हूँ, ये लोग किले में तुम लोगों के पास आ जायेंगे।

कमलिनी--क्या आप राजा वीरेन्द्रसिंह के पास नहीं चलेंगे?

कृष्ण जिन्न--नहीं।

कमलिनी--क्यों?

कृष्ण जिन्न--हमारी खुशी। राजा वीरेन्द्रसिंह से कह दीजिये कि सभी को लिए हुए इसी समय तहखाने के बाहर चले जायें।

इतना कहकर कृष्ण जिन्न उस जगह कमलिनी को ले गया जहाँ बेचारी किशोरी बदहवास पड़ी हुई थी। दुश्मन लोग सामने से बिल्कुल भाग गये थे, सिवाय जख्मियों और मुर्दो के वहां पर कोई भी मुकाबला करने वाला न था और दुश्मनों के हाथों से गिरी हुई मशालें इधर-उधर पड़ी हई कुछ बल रही थीं और कुछ ठंडी हो गई थीं। बेचारी किशोरी बिल्कुल बदहवास पड़ी हुई थी मगर तेजसिंह की तरकीब से वह बहुत जल्द होश में आ गई और कमलिनी उसे अपने साथ लेकर राजा वीरेन्द्रसिंह के पास चली गई।कृष्ण जिन्न ने उसी सूराख में से इन्द्रदेव को दरवाजा खोलने के लिए आवाज दे दी और तेजसिंह तथा बीरूसिंह को लिए दूसरी तरफ का रास्ता लिया।

किशोरी को साथ लिए हए थोड़ी ही देर में कमलिनी राजा वीरेन्द्रसिंह के पास जा पहुंची और जो कुछ उसने देखा-सुना था, सब कहा। वहाँ से भी बचे-बचाये दुश्मन लोग भाग गये थे और मुकाबला करने वाला कोई मौजूद नहीं था।

इन्द्रदेव--(राजा वीरेन्द्रसिंह से) कृष्ण जिन्न ने जो कुछ कहला भेजा है उसे मैं पसन्द करता हूँ, सभी को लेकर इसी समय तहखाने के बाहर हो जाना चाहिए।

वीरेन्द्रसिंह--मेरी भी यही राय है, ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए कि आज की ग्रहदशा सहज में कट गई। निःसन्देह आपके दोनों ऐयारों ने दुश्मनों के साथ यहाँ आकर कोई अनूठा काम किया होगा और कृष्ण जिन्न ने मानो पूरी सहायता ही की और किशोरी की जान बचा ली।

इन्द्रदेव--निःसन्देह ईश्वर ने बड़ी कृपा की मगर इस बात का अफसोस है कि कृष्ण जिन्न यहाँ न आकर ऊपर-ही-ऊपर चले गये और मैं उन्हें देख न सका तथा इस तहखाने की सैर भी इस समय आपको न करा सका।

वीरेन्द्रसिंह--कोई चिन्ता नहीं, फिर कभी देखा जायेगा, इस समय तो यहाँ से चल ही देना चाहिए।

राजा वीरेन्द्रसिंह की इच्छानुसार कैदियों को भी साथ लिए हुए सब कोई तहखाने के बाहर हुए। कैदियों को कैदखाने भेजा, औरतें महल में भेज दी गई और उनकी हिफाजत का विशेष प्रबन्ध किया गया, क्योंकि अब राजा वीरेन्द्रसिंह को इस बात का विश्वास न रहा कि रोहतासगढ़ किले के अन्दर और महल में दुश्मनों के आने का खटका नहीं है क्योंकि तहखाने के रास्तों का हाल दिन-ब-दिन खुलता ही जाता था।

इन्द्र देव को राजा वीरेन्द्रसिंह ने अपने कमरे के बगल में डेरा दिया और बड़ी