पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१४८

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होकर मुझसे मिलेगी। अब मेरा और तेरा दोनों का कैद से छूटना तेरे ही हाथ है और छूटने की तरकीब केवल यही है कि दारोगा साहब जो कुछ तुझे कहें उसे बेखटके कर दे।

अगर ऐसा करने से इनकार करेगी तो मेरी और तेरी दोनों की जान मुफ्त ही में जायगी।

तेरी प्यारी मा—सरयू"



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"अब हम रोहतासगढ़ किले के तहखाने में दुश्मनों से घिरे हुए राजा वीरेन्द्रसिंह वगैरह का कुछ हाल लिखते हैं।

जिस समय राजा वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह इत्यादि ने तहखाने के ऊपरी हिस्से से आई हुई यह आवाज सुनी कि 'होशियार, होशियार, देखो यह चाण्डाल बेचारी किशोरी को पकड़े लिए जाता है' इत्यदि-तो सभी की तबीयत बहुत ही बेचैन हो गई। राजा वीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह, इन्द्रदेव और देवीसिंह वगैरह घबरा कर चारों तरफ देखने और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए।

कमलिनी हाथ में तिलिस्मी खंजर लिए हुए कैदखाने वाले दरवाजे के बीच ही में खडी थी। उसने इन्द्रदेव से कहा--"मुझे भी उसी कोठरी के अन्दर पहुँचाइये, जिसमें किशोरी को रवखा था, फिर मैं उसे छुड़ा लूंगी।"

इन्द्रदेव--बेशक उस कोठरी के अन्दर तुम्हारे जाने से किशोरी को मदद पहुँचेगी मगर किसी ऐयार को भी अपने साथ लेती जाओ।

देवीसिंह--मुझे साथ जाने के लिए कहिये।

इन्द्रदेव--(वीरेन्द्रसिंह से) आप देवीसिंहजी को साथ जाने की आज्ञा दीजिये।

वीरेन्द्र सिंह--(देवीसिंह से) जाइये।

तेजसिंह--नहीं, कमलिनी के साथ मैं खुद जाऊंगा, क्योंकि मेरे पास भी राजा गोपालसिंह का दिया हुआ तिलिस्मी खंजर है।

इन्द्रदेव--राजा गोपालसिंह ने आपको तिलिस्मी खंजर कब दिया?

तेजसिंह--जब कमलिनी की सहायता से मैंने उन्हें मायारानी की कैद से छडाया था तब उन्होंने उसी तिलिस्मी वाग के चौथे दर्जे में से एक तिलिस्मी खंजर निकालकर मझे दिया था जिसे मैं हिफाजत से रखता हूँ। कमलिनी के साथ देवीसिंह के जाने से कोई फायदा न होगा क्योंकि जब कमलिनी तिलिस्मी खंजर से काम लेगी तो उसकी चमक से और लोगों की तरह देवीसिंह की आँखें बन्द हो जायेंगी

इन्द्रदेव--(बात काट कर) ठीक है ठीक है, मैं समझ गया। अच्छा, तो आप ही जाइये, देर न कीजिये।