में मौजूद था, मैंने भी खाया-पीया, इसके बाद अन्ना के पूछने पर मैंने अपना सब हाल शुरू से आखिर तक उसे कह सुनाया, इतने में शाम हो गई। मैं कह चुकी हूँ कि उस कमरे की छत में रोशनदान बना हुआ था जिसमें से रोशनी बखूबी आ रही थी, इसी रोशनदान के सबब से हम लोगों को मालूम हुआ कि संध्या हो गयी। थोड़ी ही देर बाद दरवाजा खोलकर दो आदमी उस कमरे में आये, एक ने चिराग जला दिया और दूसरे ने खाने-पीने का ताजा सामान रख दिया और बासी बचा हुआ उठाकर ले गया। उसके जाने के बाद फिर मुझसे और अन्ना से बातचीत होती रही और दो घण्टे के बाद मुझे नींद आ गई।
इन्द्रजीतसिंह--(गोपालसिंह से) इस जगह मुझे एक बात का सन्देह हो रहा है।
गोपालसिंह--वह क्या?
इन्द्रजीतसिंह--इन्दिरा, लक्ष्मीदेवी को पहचानती थी, इसलिए दारोगा ने उसे तो गिरफ्तार कर लिया, मगर इन्द्रदेव का उसने क्या बन्दोबस्त किया, क्योंकि लक्ष्मीदेवी को तो इन्द्रदेव भी पहचानते थे।
गोपालसिंह--इसका सबब शायद यह है कि व्याह के समय इन्द्रदेव यहां मौजूद न थे और उसके बाद भी लक्ष्मीदेवी को देखने का उन्हें मौका न मिला। मालूम होता है कि दारोगा ने इन्द्रदेव से मिलने के बारे में नकली लक्ष्मीदेवी को कुछ समझा दिया था जिससे वर्षों तक मुन्दर ने इन्द्रदेव के सामने से अपने को बचाया और इन्द्रदेव ने भी इस बात की कुछ परवाह न की। अपनी स्त्री और लड़की के गम में इन्द्रदेव ऐसा डूबे कि वर्षों बीत जाने पर भी वह जल्दी घर से नहीं निकलते थे, इच्छा होने पर कभी-कभी मैं स्वयं उनसे मिलने के लिए जाया करता था। कई वर्ष बीत जाने पर जब मैं कैद हो गया और सभी ने मुझे मरा हुआ जाना, तब इन्द्रदेव के खोज करने पर लक्ष्मीदेवी का पता लगा और उसने लक्ष्मीदेवी को कैद से छुड़ाकर अपने पास रखा। इन्द्रदेव को भी मेरे मरने का निश्चय हो गया था, इसलिए मुन्दर के विषय में उन्होंने ज्यादा बखेड़ा उठाना व्यर्थ समझा और दुश्मनों से बदला लेने के लिए लक्ष्मीदेवी को तैयार किया। कैद से छटने के बाद मैं खुद इन्द्रदेव से मिलने के लिए गुप्त रीति से गया था, तब उन्होंने लक्ष्मीदेवी का हाल मुझसे कहा था।
इन्द्रजीतसिंह--इन्द्रदेव ने लक्ष्मीदेवी को कैद से क्योंकर छुड़ाया था और उस विषय में क्या किया सो मालूम न हुआ।
राजा गोपालसिंह ने लक्ष्मीदेवी का कुल हाल जो हम ऊपर लिख आये हैं, बयान किया और इसके बाद फिर इन्दिरा ने अपना किस्सा कहना शुरू किया।
इन्दिरा--उसी दिन आधी रात के समय जब मैं सोई हुई थी और अन्ना भी मेरे बगल में लेटी हई थी, यकायक इस तरह की आवाज आई जैसे किसी ने अपने सिर पर से कोई गठरी उतारकर फेंकी हो। उस आवाज ने मुझे तो न जगाया, मगर अन्ना झट उठ बैठी और इधर-उधर देखने लगी। मैं बयान कर चुकी हूँ कि इस कमरे में दो दरवाजे थे। उनमें से एक दरवाजा तो लोगों के आने-जाने के लिए था और वह बाहर से बन्द रहता, मगर दूसरा खुला हुआ था जिसके अन्दर मैं तो नहीं गई थी, मगर अन्ना हो