पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१४३

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बात सबसे भारी समझी जाती थी। इसलिए दामोदरसिंह की किसी ने भी न सुनी और बड़े महाराज को मारना निश्चय हो गया। ऐसा करने में दारोगा और रघुबरसिंह का फायदा था क्योंकि वे दोनों आदमी लक्ष्मीदेवी के बदले में हेलासिंह की लड़की मुन्दर के साथ मेरी शादी करना चाहते थे और बड़े महाराज के रहते यह बात बिल्कुल असम्भव थी। आखिर दामोदरसिंह ने अपनी जान का कुछ खयाल न किया और सभा-सम्बन्धी मुख्य कागज और सभा के सभासदों (मेम्बरों) का नाम तथा अपना वसीयतनामा लिख कर कलमदान में बन्द किया और कलमदान अपनी लड़की के हवाले कर दिया जैसा कि आप इन्दिरा की जुबानी सुन चुके हैं। जब गदाधरसिंह को सभा का पूरा हाल, जितने आदमियों को सभा मार चुकी थी, उनके नाम और सभा के मेम्बरों के नाम मालूम हो गये, तब उसे लालच ने घेरा और उसने सभा के सभासदों से रुपये वसूल करने का इरादा किया। कलमदान में जितने कागज थे, उसने सभी की नकल ले ली और असल कागज तथा कलमदान कहीं छिपा कर रख आया। इसके बाद गदाधरसिंह दारोगा के पास गया और उससे एकान्त में मुलाकात करके बोला कि "तुम्हारी गुप्त सभा का हाल अब खुलना चाहता है और तम लोग जहन्नम में पहुँचना चाहते हो। वह दामोदरसिंह वाला कलमदान तुम्हारी सभा से लूट ले जाने वाला मैं ही हूँ, और मैंने उस कलमदान के अन्दर का बिल्कुल हाल जान लिया। अब वह कलमदान मैं तुम्हारे राजा साहब के हाथ में देने के लिए तैयार हूँ। अगर तुम्हें विश्वास न हो तो इन कागजों को देखो जो मैं अपने हाथ से नकल करके तुम्हें दिखाने के लिए ले आया हूँ।"

इतना कहकर गदाधरसिंह ने वे कागज दारोगा के सामने फेंक दिये। दारोगा के तो होश उड़ गये और मौत भयानक रूप से उसकी आँखों के सामने नाचने लगी। उसने चाहा कि किसी तरह गदाधरसिंह को खपा (मार) डाले, मगर यह बात असम्भव थी। क्योंकि गदाधरसिंह बहुत ही काइयां और हर तरह से होशियार तथा चौकन्ना था, अतएव सिवाय उसे राजी करने के दारोगा को और कोई बात न सूझी। आखिर बीस हजार अशर्फी चार रोज के अन्दर दे देने के वादे पर दारोगा ने अपनी जान बचाई और कलमदान भूतनाथ से मांगा, भूतनाथ ने बीस हजार अशर्फी लेकर दारोगा की जान छोड़ देने का वादा किया और कलमदान देना भी स्वीकार किया, अतः दारोगा ने उतने ही को गनीमत समझा और चार दिन के बाद बीस हजार अशर्फी गदाधरसिंह को अदा करके आप पूरा कंगाल बन बैठा। इसके बाद गदाधरसिंह ने और मेम्बरों से भी कुछ वसूल किया और कलमदान दारोगा को दे दिया, मगर दारोगा से इस बात का इकरारनामा लिखा लिया कि वह किसी ऐसे काम में शरीक न होगा और न खुद ऐसा काम करेगा जिसमें इन्द्रदेव, सरयू, इन्दिरा और मुझ (गोपालसिंह)को किसी तरह का नुकसान पहुँचे। इन सब कामों से छुट्टी पाकर गदाधरसिंह दारोगा से अपने घर के लिए विदा हुआ, मगर वास्तव में वह फिर भी घर न गया और भेष बदल कर इसलिए जमानिया में घूमने लगा कि रघुबरसिंह के भेदों का पता लगाये जो बलभद्रसिंह के साथ विश्वासघात करने वाला था। वह फकीरी सूरत में रोज रघुबरसिंह के यहां आकर नौकरों और सिपाहियों में बैठने और हेलमेल बढ़ाने लगा। थोड़े ही दिनों में उसे मालूम हो गया कि रघुबरसिंह