पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१३६

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उन लाशों को देखने के लिए जमा हो गये थे। उस समय मैंने बेईमान और विश्वासघाती दारोगा को बुलाने के लिए आदमी भेजा मगर उस आदमी ने वापस आकर कहा कि दारोगा साहब छत पर से गिर कर जख्मी हो गए हैं, सिर फट गया है और उठने लायक नहीं हैं। मैंने उस बात को सच मान लिया था, लेकिन वास्तव में दारोगा भी उस सभा में जख्मी हुआ था जिसमें मेरे खजांची ने जान दी थी। मगर अफसोस, मेरी किस्मत में तो तरह-तरह की तकलीफें बदी हई थीं, मैं उस दुष्ट की तरफ से क्योंकर होशियार होता। (इन्दिरा से) खैर, तुम आगे का हाल कहो, यह सब तुम्हारी ही जबान से अच्छा मालूम होता है।

इन्दिरा--हाँ, तो अब मैं संक्षेप ही में यह किस्सा बयान करती हूँ। तीनों लाशे ठिकाने पहुँचा दी गईं और राजा साहब मेरे पिता का हाथ थामे यह कहते हुए महल के अन्दर चले कि "चलो सरयू से पूछे कि वह क्योंकर उन दुष्टों के फन्दे में फंस गई था और उस सभा में कौन-कौन आदमी शरीक थे शायद उसने सभी को बिना नकाब के देखा हो।" मगर जब महल में गये तो मालूम हआ कि सरयू यहाँ आई ही नहीं। यह सुनते ही राजा साहब घबरा गये और बोल उठे, "क्या हमारे यहाँ के सभी आदमी उस कमेटी से मिले हुए हैं!"

गोपालसिंह--उस समय तो मैं पागल सा हो गया था, कुछ भी अक्ल काम नहीं करती थी और यह किसी तरह मालूम नहीं होता था कि हमारे यहाँ कितने आदमी विश्वास करने योग्य हैं और कितने उस कमेटी से मिले हए हैं। जिन तीन विश्वासा आदमियों के साथ मैंने सरयू को महल में भेजा था, वे तीनों आदमी भी गायब हो गए थे। मुझे तो विश्वास हो गया था कि मेरी और इन्द्रदेव की जान भी न बचेगी मगर वाह रे इन्द्रदेव, उसने अपने दिल को खूब ही सम्हाला और बड़ी मुस्तैदी और बुद्धिमानी स महीने भर के अन्दर बहुत से आदमियों का पता लगाया जो मेरे ही नौकर होकर उस कमेटी में शरीक थे और मैंने उन सभी को तोप के आगे रखकर उड़वा दिया और सर तो यह है कि उसी दिन से वह गुप्त कमेटी टूट गई और फिर कायम नहीं हुई।

इन्दिरा--जिस समय मेरे पिता को मालम हआ कि मेरी माँ महल के अन्दर नहीं पहुँची, बीच ही में गायब हो गई, उस समय उन्हें बड़ा ही रंज हआ और वे अपन घर जाने के लिए तैयार हो गये। उन्होंने राजा साहब से कहा कि मैं पहले घर जाकर यह मालूम किया चाहता हूँ कि वहाँ से केवल मेरी स्त्री ही को दुश्मन लोग ले गए थे या मेरी लडकी इन्दिरा को भी। मगर मेरे पिता घर की तरफ न जा सके, क्योंकि उसी समय घर से एक दूत आ पहुंचा और उसने इत्तिला दी कि सरयू और इन्दिरा दोनों यकायक गायब हो गई। इस खबर को सुनकर मेरे पिता और भी उदास हो गए। फिर भी उन्होंने बड़ी कारीगरी से दुश्मनों का पता लगाना आरम्भ किया और बहुतों को पकड़ा भी, जैसा कि अभी राजा साहब कह चुके हैं।

इन्द्रजीत सिंह--क्या तुम दोनों को दुश्मनों ने गिरफ्तार कर लिया था ?

इन्दिरा--जी हाँ।

आनन्दसिंह--अच्छा तो पहले अपना और अपनी माँ का हाल कहो कि किस