पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१३०

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रहने वाला दामोदरसिंह भी हमारी सभा का सभासद (मेम्बर) था। एक दिन इस सभा ने लाचार होकर यह हुक्म जारी किया कि जमानिया के राजा को अर्थात् तुम्हारे बाप को इस दुनिया से उठा दिया जाय, क्योंकि वह गद्दी चलाने लायक नहीं है, और तुमको जमानिया की गद्दी पर बैठाया जाय। यद्यपि दामोदरसिंह को भी नियमानुसार हमारा साथ देना उचित था मगर वह तुम्हारे बाप का पक्ष करके बेईमान हो गया अतएव लाचार होकर हमारी सभा ने उसे प्राणदण्ड दिया। अब तुम लोग उस दामोदरसिंह के खूनी का पता लगाना चाहते हो मगर इसका नतीजा अच्छा नहीं निकल सकता। आज इस सभा ने इसलिए तुम्हें बुलाया है कि तुम्हें हर बात से होशियार कर दिया जाय। इस सभा का हुक्म टल नहीं सकता, तुम्हारा बाप अब बहुत जल्द इस दुनिया से उठा दिया जायगा और तुमको जमानिया की गद्दी पर बैठने का मौका मिलेगा। तुम्हें उचित है कि हम लोगों का पीछा न करो अर्थात् यह जानने का उद्योग न करो कि हम लोग कौन हैं या कहाँ रहते हैं, और अपने दोस्त इन्द्रदेव को भी ऐसा करने के लिए ताकीद कर दो, नहा तो तुम्हारे और इन्द्रदेव के लिए भी प्राणदण्ड का हुक्म दिया जायगा। बस, केवल इतना ही समझाने के लिए तुम इस सभा में बुलाये गये थे और अब बिदा किये जाते हो।"

इतना कहकर उस नकाबपोश ने ताली बजाई और उन्हीं दुष्टों ने जो मुझे वहा ले गये थे मेरे मुँह पर कपड़ा डालकर फिर उसी तरह कस दिया। खम्भे से खोलकर मुझ बाहर ले आये, कुछ दूर पैदल चला कर घोड़े पर लादा और उसी तरह दोनों पैर कसकर बांध दिये। लाचार होकर मुझे फिर उसी तरह का सफर करना पड़ा और किस्मत ने फिर उसी तरह मुझे तीन पहर तक घोड़े पर बैठाया। इसके बाद एक जंगल में पहुंच कर घोड़े पर से नीचे उतार दिया, हाथ-पैर खोल दिए, मुंह पर से कपड़ा हटा लिया और जिस घोड़े पर मैं सवार कराया गया था उसे साथ लेकर वे लोग वहाँ से रवाना ही गये। उस तकलीफ ने मुझे ऐसा बेदम कर दिया था कि दस कदम चलने की भी ताकत न थी और भूख-प्यास के मारे बुरी हालत हो गई थी, दिन पहर भर से ज्यादा चढ़ चुका था, पानी का बहता हुआ चश्मा मेरी आँखों के सामने था, मगर मुझमें उठकर वहाँ तक जाने की ताकत न थी। घण्टे-भर तक तो यों ही पड़ा रहा, इसके बाद धीरे-धीरे चश्मे के पास गया, खब पानी पीया तब जी ठिकाने हुआ। मैं नहीं कह सकता कि किन कठिनाइया से दो दिन में यहाँ तक पहुँचा हूँ। अभी तक घर नहीं गया, पहले तुम्हारे पास आया है। हाँ, धिक्कार है मेरी जिन्दगी और राजकुमार कहलाने पर ! जब मेरी रिआया का इन्साफ बदमाशों के आधीन है तो मैं यहां का हाकिम क्योंकर कहलाने लगा ? जब म अपनी हिफाजत आप नहीं कर सकता तो प्रजा की रक्षा कैसे कर सकंगा? बड़े खेद की बात है कि अदने दर्जे के बदमाश लोग हम पर मुकदमा करें और हम उनका कुछ भी न बिगड सकें, हमारे हितैषी दामोदरसिंह मार डाले गये और अब मेरे प्यारे पिता के मारने की फिक्र की जा रही है।

गोपालसिंह--निःसन्देह उस समय मुझे बड़ा ही रंज हुआ था। आज जब मैं उन बातों को याद करता हूँ तो मालूम होता है कि उन लोगों को यदि मुन्दर की शादी मेरे