पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१२६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
126
 

चाहते थे कि कमरे का दरवाजा खुला और महाराज के एक चोबदार को साथ लिए हुए नाना साहब का एक सिपाही कमरे के अन्दर दाखिल हुआ। पिता को बड़ा ताज्जुब हुआ और उन्होंने चोबदार से वहाँ आने का सबब पूछा। चोबदार ने जवाब दिया कि आपको कुंअर साहब (गोपालसिंह) ने शीघ्र ही बुलाया है और अपने साथ लाने के लिए मुझे सख्त ताकीद की है।

गोपालसिंह--हाँ, ठीक है, मैंने उन्हें अपनी मदद के लिए बुलवाया था, क्योंकि मेरे और इन्द्रदेव के बीच दोस्ती थी और उस समय मैं दिली तकलीफों से बहुत बेचैन था। इन्द्रदेव से और मुझसे अब भी वैसी ही दोस्ती है, वह मेरा बहुत सच्चा दोस्त है, चाहे वर्षों हम दोनों में पत्र-व्यवहार न हो मगर दोस्ती में किसी तरह की कमी नहीं आ सकती।

इन्दिरा–-बेशक ऐसा ही है ! तो उस समय का हाल और उसके बाद मेरे पिता से और आपसे जो-जो बातें हुई थीं सो आप अच्छी तरह बयान कर सकते हैं।

गोपालसिंह--नहीं-नहीं, जिस तरह तुम और हाल कह रही हो उसी तरह वह भी कह जाओ, मैं समझता हूँ कि इन्द्रदेव ने यह सब हाल तुमसे कहा होगा।

इन्दिरा--जी हाँ, इस घटना के कई वर्ष बाद पिताजी ने मुझसे सब हाल कहा था जो अभी तक मुझे अच्छी तरह याद है, मगर मैं उन बातों को मुख्तसिर ही में बयान करती हूँ।

गोपालसिंह--क्या हर्ज है तुम मुख्तसिर में बयान कर जाओ, जहाँ भूलोगी मैं बता दूंगा, यदि वह हाल मुझे भी मालूम होगा।

इन्दिरा जो आज्ञा ! मेरे पिता जब चोबदार के साथ राजमहल में गये, तो मालूम हुआ कि कुँअर साहब घर में नहीं हैं कहीं बाहर गये हैं। आश्चर्य में आकर उन्होंने कुँअर साहब के खास खिदमतगार से दरियाफ्त किया तो उसने जवाब दिया कि आपके पास चोबदार भेजने के बाद बहुत देर तक अकेले बैठकर आपका इन्तजार करते रहे मगर जब आपके आने में देर हुई तो घबराकर खुद आपके मकान की तरफ चले गये। यह सुनते ही मेरे पिता घबराकर वहां से लौटे और फौरन ही घर पहुँचे मगर कुँअर साहब से मुलाकात न हई। दरियाफ्त करने पर पहरेदार ने कहा कि कुँअर साहब यहाँ नहीं आए हैं। वे पुनः लौटकर राजमहल में गये, परन्तु कुँअर साहब का पता न लगना था और न लगा। मेरे पिता की वह तमाम रात परेशानी में बीती, और उस समय उन्हें नाना साहब की बात याद आई जो उन्होंने मेरे पिता से कही थी कि अब जमानिया में बड़ा भारी उपद्रव उठना चाहता है।

तमाम रात बीत गई, दूसरा दिन चला गया, तीसरा दिन चला गया, मगर कुँअर माजका पता न लगा। सैकड़ों आदमी खोज में निकले, तमाम शहर में कोलाहल मच गया जिसे देखिए वह इन्हीं के विषय में तरह-तरह की बातें कहता और आश्चर्य करता था। उन दिनों कुंअर साहब (गोपालसिंह) की शादी लक्ष्मीदेवी से लगी हई थी और तिलिस्मी दारोगा साहब शादी के विरुद्ध बातें किया करते थे, इस बात की चर्चा भी शहर में फैली हुई थी।