मेरी मां ने बहुत-कुछ मिन्नत और आजिजी की मगर नाना साहब ने अपनी बदहवासी का सबब कुछ भी बयान न किया और बाहर चले गये। थोड़ी ही देर बाद एक लौंडी ने आकर खबर दी कि बालाजी (मेरे पिता)इन्द्रदेव आ गये। उस समय मेरी माँ को नाना साहब की बातों का निश्चय हो गया और वह समझ गई कि अब इसी समय यहां से रवाना हो जाना पड़ेगा।
थोड़ी देर बाद मेरे पिता घर में आये। माँ ने उनसे आने का सबब पूछा जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि "तुम्हारे पिता ने एक विश्वासी आदमी के हाथ मुझे पत्र भेजा जिसमें केवल इतना ही लिखा था कि इस पत्र को देखते ही चल पड़ो और जितनी जल्दी हो सके हमारे पास पहुँचो।" मैं पत्र पढ़ते ही घबरा गया, उस आदमी से पूछा कि घर में कुशल तो है ? उसने कहा कि “सब कुशल है, मैं बहुत तेज ड़ेि पर सवार करा के तुम्हारे पास भेजा गया हूँ। अब मेरा घोड़ा लौट जाने लायक नहीं है। मगर तुम बहुत जल्द उनके पास जाओ।" मैं घबराया हुआ एक घोड़े पर सवार हो के उसी वक्त चल पड़ा मगर इस समय यहां पहुंचने पर उनसे ऐसा करने का सबब पूछा तो कोई भी जवाब न मिला, उन्होंने एक कागज मेरे हाथ में देकर कहा कि इसे हिफाजत से रखना, इस कागज में मैंने अपनी कुल जायदाद इन्दिरा के नाम लिख दी है। मेरी जिन्दगी का अब कोई ठिकाना नहीं। तुम इस कागज को अपने पास रखो और अपनी स्त्री तथा लड़की को लेकर इसी समय यहाँ से चले जाओ, क्योंकि अब जमानिया में बड़ा भारी उपद्रव उठना चाहता है ? बस, इससे ज्यादा और कुछ न कहेंगे। तुम्हारी बिदाई का सब बन्दोबस्त हो चुका है, सवारी इत्यादि तैयार है।"
इतना कहकर मेरे पिता चुप हो गये और दम भर के बाद उन्होंने मेरी मां से पूछा कि इन सब बातों का सबब यदि तुम्हें कुछ मालूम हो तो कहो। मेरी माँ ने भी थोड़ी देर पहले जो कुछ हो चुका था, कह सुनाया। मगर कलमदान के बारे में केवल इतना ही कहा कि पिताजी यह कलमदान इन्दिरा के लिए दे गये हैं और कह गये हैं कि कोई इसे खोलने न पावे, जब इन्दिरा की शादी हो जाये तो वह अपने हाथ से इसे खोलें।
इसके बाद मेरे पिता मिलने के लिए मेरी नानी के पास गये और देखा कि रोतेरोते उसकी अजीब हालत हो गई है। मेरे पिता को देखकर वह और भी रोने लगी मगर इसका सबब कुछ भी न बता सकी कि उसके मालिक को आज क्या हो गया है, वे इतने बदहवास क्यों हैं, और अपनी लड़की को इसी समय यहाँ से बिदा करने पर क्यों मजबूर हो रहे हैं क्यवेकि उस बेचारी को भी इसकी बाबत कुछ मालूम न था।
यह सब बातें जो मैं ऊपर कह आई हैं सिवाय हम पांच आदमियों के और किसी को मालम न थीं। उस घर का और कोई भी यह नहीं जानता था कि आज दामोदरसिंह बदहवास हो रहे हैं और अपनी लड़की को किसी लाचारी से इसी समय बिदा कर रहे हैं।
थोड़ी देर बाद हम लोग बिदा कर दिये गये। मेरी मां रोती हुई मुझे साथ लेकर रथ में रवाना हुई जिसमें दो मजबूत घोड़े जुते हुए थे, और इसी तरह के दूसरे