यह चिट्ठी भी उसी मामूली ठिकाने पर रख दी गई और फिर दो रोज तक इन्दिरा का कुछ हाल मालूम न हुआ। तीसरे दिन संध्या होने से पहले जब कुछ-कुछ दिन बाकी था और दोनों कुमार उसी बाग में नहर के किनारे बैठे बातचीत कर रहे थे यकायक उसी चमेली की झाड़ी में से हाथ में लालटेन लिए निकलती हुई इन्दिरा दिखाई पड़ी। वह सीधे उस तरफ रवाना हुई जहाँ दोनों कुमार नहर के किनारे बैठे हुए थे। जब उनके पास पहुंची तो लालटेन जमीन पर रखकर प्रणाम किया और हाथ जोड़कर सामने खड़ी हा गई। इसकी सूरत-शक्ल के बारे में हमें जो कुछ लिखना था ऊपर लिख चुके हैं, यहाँ पर पुनः लिखने की आवश्यकता नहीं है, हां, इतना जरूर कहेंगे कि इस समय इसकी पोशाक में फर्क था। इन्द्रजीतसिंह ने बड़े गौर से इसे देखा और कहा, "बैठ जाओ और निडर होकर अपना हाल कहो।"
इन्दिरा--(बैठकर) इसीलिए तो मैं सेवा में उपस्थित हुई हैं कि अपना आश्चर्यजनक हाल आपसे कहूँ। आप प्रतापी राजा वीरेन्द्रसिंह के लड़के हैं और इस योग्य हैं कि हमारा मुकद्दमा सुनें, इन्साफ करें, दुष्टों को उचित दण्ड दें, और हम लोगों को दुःख के समुद्र से निकालकर बाहर करें।
इन्द्रजीतसिंह--(आश्चर्य से) 'हम लोगों' ! क्या तुम यहाँ अकेली नहीं हो? क्या तुम्हारे साथ कोई और भी इस तिलिस्म में दुःख भोग रहा है?
इन्दिरा--जी हाँ, मेरी माँ भी इस तिलिस्म के अन्दर बुरी अवस्था में पड़ी है मैं तो चलने-फिरने योग्य भी हूँ परन्तु वह बेचारी तो हर तरह से लाचार है। आ मेरा किस्सा सुनेंगे तो आश्चर्य करेंगे और निःसन्देह आपको हम लोगों पर दया आयेगी।
इन्द्रजीतसिंह--हाँ-हाँ, हम सुनने के लिए तैयार हैं, कहो और शीघ्र कहो।
इन्दिरा अपना किस्सा शुरू किया ही चाहती थी कि उसकी निगाह यकायक राजा गोपालसिंह पर जा पड़ी जो उसके सामने और दोनों कुमारों के पीछे की तरफ से हाथ में लालटेन लिए चले आ रहे थे। वह चौंककर उठ खड़ी हुई और उसी समय कंअर इन्द्रजीतसिंह तथा आनन्दसिंह ने भी घूमकर राजा गोपालसिंह को देखा। जब राजा साहब दोनों कुमारों के पास पहुँचे तो इन्दिरा ने प्रणाम किया और हाथ जोडकर खड़ी हो गई। कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह का चेहरा खुशी से दमक रहा था और वे हर तरह से प्रसन्न मालूम होते थे।
इन्द्रजीतसिंह--(गोपालसिंह से) आपने तो कई दिन लगा दिए।
गोपालसिंह--हाँ, एक ऐसा ही मामला आ पड़ा था कि जिसका पूरा पता लगाये बिना यहाँ पर न आ सका, पर आज मैं अपने पेट में ऐसी-ऐसी खबरें भर के लाया हूँ कि जिन्हें सुनकर आप लोग बहुत ही प्रसन्न होंगे और साथ ही इसके आश्चर्य भी करेंगे। मैं सब हाल आपसे कहूँगा मगर (इन्दिरा की तरफ इशारा करके) इस लड़की का हाल सून लेने के बाद। (अच्छी तरह देखकर) निःसन्देह इसकी सूरत-शक्ल उस पुतली की ही तरह है।
आनन्दसिंह--कहिए भाईजी, अब तो मैं सच्चा ठहरा न!
गोपालसिंह--बेशक, तो क्या इसने अपना हाल आप लोगों से कहा?