पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१०४

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नीचे नानक और भूतनाथ का सिपाही, जिसने अपना नाम दाऊबाबा रखा हुआ था बैठे हुए सफर की हरारत मिटा रहे हैं। पास ही में मनोरमा भी बैठी है जिसके हाथ-पैर कमन्द से बँधे हुए हैं। थोड़ी ही दूर पर एक घोड़ी चर रही थी, जिसकी लम्बी बागडोर एक डाल के साथ बँधी हुई थी और जिस पर मनोरमा को लाद के वे लोग लाए थे। इस समय सफर की हरारत मिटाने और धूप का समय टाल देने के लिए वे लोग इस पेड़ के नीचे बैठे हुए बात कर रहे हैं।

नानक--(मनोरमा से) मुझे तुम्हारी शक्ल-सूरत पर रहम आता है, तुम नाहक ही एक बदकार और नकली मायारानी के लिए अपनी जान दे रही हो।

मनोरमा--(लम्बी साँस लेकर) बात तो ठीक है, मगर अब जान बचने की कोई उम्मीद भी तो नहीं है। सच कहती हूँ कि इस जिन्दगी का मजा मैंने कुछ भी नहीं पाया। मेरे पास करोड़ों रुपये की जमा मौजूद है, मगर वह इस समय मेरे किसी अर्थ की नहीं, न मालम उस पर किसका कब्जा होगा और उसे पाकर कौन आदमी अपने को भाग्यवान मानेगा, या शायद लावारिसी माल समझ राजा ही...

नानक--तुम रोती क्यों हो, आँखें पोंछो, तुम्हारा रोना मुझे अच्छा नहीं मालूम होता। मैं सच कहता हूँ कि तुम्हारी जान बच सकती है और तुम अपनी दौलत का आनन्द अच्छी तरह भोग सकती हो यदि बलभद्रसिंह और इन्दिरा का पता बता दो!

मनोरमा--मैं बलभद्रसिंह और इन्दिरा का पता भी बता सकती हैं और अपनी कुछ दौलत भी तुमको दे सकती हूँ, यदि मेरी जान बच जाये यदि तुम एक सल्क मेरे साथ करो।

नानक--वह कौन सा सलूक है जो तुम्हारे साथ करना होगा ? हाय मुझे तुम्हारी सूरत पर दया आती है। मैं नहीं चाहता कि एक ऐसी खूबसूरत परी दुनिया से उठ जाये।

मनोरमा--वह बात बहुत गुप्त है, इसीलिए मैं नहीं चाहती कि उसे सिवाय तुम्हारे कोई और सुने।

दाऊबाबा--लो, हम आप ही अलग हो जाते हैं, तुम लोग अपना मजे में बातें करो, हमें इन सब बखेड़ों से कोई मतलब नहीं, हमें तो मालिक का काम होने से मतलब है, तब तक दो-एक चिलम गाँजा उड़ा के सफर की थकावट मिटाते हैं।

इतना कहकर दाऊ बाबा जो वास्तव में एक मस्त आदमी था, उठकर कुछ दूर चला गया और अपने सफरी बटुए मेंसे चकमक निकालकर आग सुलगाने के बाद आनन्द के साथ गांजा मलने लगा, इधर नानक उठकर मनोरमा के पास जा बैठा।

नानक--लो कहो, अब क्या कहती हो ! मनोरमा--यह तो तुम जानते हो कि मेरे पास बड़ी दौलत है!

नानक--हाँ, सो मैं खूब जानता हूँ कि तुम्हारे पास करोड़ों रुपये की जमा मौजूद है!

मनोरमा--और यह भी जानते हो कि तुम्हारी प्यारी रामभोली भी मेरे ही कब्जे में है!

नानक--(चौंक कर) नहीं, सो तो मैं नहीं जानता ! क्या वास्तव में रामभोली