पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१००

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जिसका हाल आपसे तथा गोपाल भाई से कहा था।

इन्द्रजीतसिंह--अगर वास्तव में ऐसा है तो फिर इसे गिरफ्तार करना चाहिए।

आनन्दसिंह--जरूर गिरफ्तार करना चाहिए।

दोनों भाई सलाह करके उस पेड़ की आड़ में से निकले और उस औरत को घेर कर गिरफ्तार करने का उद्योग करने लगे। थोड़ी ही देर के बाद नजदीक होने पर इन्द्रजीतसिंह ने भी देख कर निश्चय कर लिया कि हाथ में लालटेन लिए हुए यह वही औरत है जिसे तिलिस्म में फाँसी लटकते हुए आदमी के साथ-साथ निर्जीव खड़े देखा था।

उस औरत को भी मालूम हो गया कि दो आदमी उसे गिरफ्तार करना चाहते हैं अतएव वह चैतन्य हो गई और चमेली की टट्टियों में घूम-फिर कर कहीं गायब हो गई। दोनों भाइयों ने बहुत उद्योग और पीछा किया मगर नतीजा कुछ भी न निकला। वह औरत ऐसी गायब हुई कि कोई निशान भी न छोड़ गई, न मालूम वह चमेली की टट्टियों में लीन हो गई या जमीन के अन्दर समा गई। दोनों भाई लज्जा के साथ-हीसाथ निराश होकर अपनी जगह लौट आये और उसी समय राजा गोपालसिंह को भी एक हाथ में चंगेर और दूसरे हाथ में तेज रोशनी की अद्भुत लालटेन लिए हुए आते देखा। गोपालसिंह दोनों भाइयों के पास आए और लालटेन तथा चंगेर जिसमें खाने की चीजें थीं जमीन पर रन कर इस तरह बैठ गये जैसे बहुत दूर से चलकर आता हुआ मुसाफिर परेशानी और बदहवासी की हालत में आगे सफर करने से निराश होकर पृथ्वी की शरण लेता है, या कोई-कोई धनी अपनी भारी रकम खो देने के बाद चोरों की तलाश से निराश और हताश होकर बैठ जाता है। इस समय राजा गोपाल सिंह के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था और वे बहुत ही परेशान और बदहवास मालूम होते थे। कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने घबराकर पूछा, "कहिए कुशल तो है?"

गोपालसिंह--(घबराहट के साथ) कुशल नहीं है। इन्द्रजीतसिंह-सो क्यों?

गोपालसिंह--मालूम होता है कि हमारे घर में किसी जबर्दस्त दुश्मन ने पैर रक्खा है और वह हमारे यहाँ से उस चीज को ले गया जिसके भरोसे पर हम अपने को तिलिस्म का राजा समझते थे और तिलिस्म तोड़ने के समय आपको काफी मदद देने का हौसला रखते थे।

आनन्दसिंह--वह कौन-सी चीज थी?

गोपालसिंह---वही तिलिस्मी किताब, जिसका जिक्र आप लोगों से कर चुके हैं और जिसे लाने के लिए हम इस समय गए थे।

इन्द्रजीतसिंह--(रंज के साथ) अफसोस ! आप उसे छिपाकर नहीं रखते थे ?

गोपालसिंह--छिपाकर तो ऐसा रखते थे कि हमें वर्षों तक कैदखाने में सड़ाने और मूर्दा बनाने पर भी मुन्दर, जिसने अपने को मायारानी बना रक्खा था, उस किताब को न पा सकी।

इन्द्रजीतसिंह--तो आज वह यकायक गायब कैसे हो गई?