पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१०

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हमारे पास आएगा, बल्कि ताज्जुब नहीं कि अबकी दफे कोई नया रंग लावे।

आनन्दसिंह-जैसी आज्ञा, अच्छा तो वह किताब मुझे दीजिए, मैं भी पढ़ जाऊँ।

दोनों भाई लौटकर फिर उसी मन्दिर के पास आए और आनन्दसिंह तिलिस्मी किताब को पढ़ने में लौलीन हुए।

दोनों भाई चार दिन तक उसी बाग में रहे। इस बीच में उन्होंने न तो कोई कार्रवाई की और न कोई तमाशा देखा। हाँ, आनन्दसिंह ने उस किताब को अच्छी तरह पढ़ डाला और सब बातें दिल में बैठा लीं। वह खून से लिखी हुई तिलिस्मी किताब बहुत बड़ी न थी और उसके अन्त में यह बात लिखी हुई थी-

"निःसन्देह तिलिस्म खोलने वाले का जेहन तेज होगा। उसे चाहिए कि इस किताब को पढ़कर अच्छी तरह याद कर ले क्योंकि इसके पढ़ने से ही मालूम हो जायगा कि यह तिलिस्म खोलने वाले के पास बची न रहेगी, किसी दूसरे काम में लग जायगी,ऐसी अवस्था में अगर इसके अन्दर लिखी हुई कोई बात भूल जायगी तो तिलिस्म खोलने वाले की जान पर आ बनेगी। जो आदमी इस किताब को आदि से अन्त तक याद न कर सके, वह तिलिस्म के काम में कदापि हाथ न लगावे, नहीं तो धोखा खायेगा।"


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दिन लगभग पहर भर के चढ़ चुका है। दोनों कुमार स्नान-ध्यान-पूजा से छुट्टी पाकर तिलिस्म तोड़ने में हाथ लगाने के लिए जा ही रहे थे कि रास्ते में फिर उसी बुड्ढे से मुलाकात हुई। बुड्ढे ने झुककर दोनों कुमारों को सलाम किया और अपनी जेब में से एक चिट्ठी निकालकर कुँअर इन्द्रजीतसिंह के हाथ में देकर बोला, "देखिए राजा गोपालसिंह के हाथ को सिफारिशी चिट्ठी ले आया हूँ, इसे पढ़कर तब कहिए कि मुझ पर भरोसा करने में अब आपको क्या उज्र है ?" कुमार ने चिट्ठी पढ़ी और आनन्दसिंह को दिखाने के बाद हँसकर उस बुड्ढे की तरफ देखा।

बुड्ढा—(मुस्कुराकर) कहिए, अब आप क्या कहते हैं ? क्या इस पत्र को आप जाली या बनावटी समझते हैं ?

इन्द्रजीतसिंह--नहीं-नहीं, यह चिट्ठी जाली नहीं हो सकती, मगर देखो तो सही

--इस (आनन्दसिंह के हाथ से चिट्ठी लेकर और चिट्ठी में लिखे हुए एक निशान को दिखाकर) इस निशान को तुम पहचानते हो या इसका मतलब तुम जानते हो?

वुड्ढा—(निशान देखकर) इसका मतलव तो आप जानिए या गोपालसिंह जानें मुझे क्या मालूम,यदि आप बतलाइए तो...

इन्द्रजीतसिंह--इसका मतलब यही है कि यह चिट्ठी बेशक सच्ची है, मगर इसमें लिखा है उस पर ध्यान न देना!

बुड्ढा--क्या गोपालसिंह ने आपसे कहा था कि हमारी लिखी जिस चिट्ठी पर