पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/९४

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पहुँची होगी। चिट्ठी पढ़ने के पहले ही उसने कई दफे उसे सूंघा और आँखें बन्द करके 'वाह-वाह' कहने लगी। मगर उस खुशबू का काम केवल इतना ही न था कि दिल और दिमाग को खुश करे बल्कि उसमें मजेदार और आनन्द देने वाली बेहोशी पैदा करने का भी गुण था, इसलिए चिट्ठी पढ़ने के पहले ही नागर के दिमाग की ताकत जिससे चेतना और विचार शक्ति का सम्बन्ध है बिल्कुल जाती रही और वह बेहोश होकर दीवार के साथ उठेग गई। उसकी हालत देख कर श्यामलाल आगे बढ़ा और पास जाकर बिना कुछ सोचे-विचारे उसकी उँगली से वह अंगूठी निकाल ली जो तिलिस्मी खंजर के जोड़ की और मामूली तौर की बिल्कुल सादी थी। अँगूठी लेकर श्यामलाल ने मुँह में रख ली और उसी रंग की दूसरी अंगूठी अपनी जेब से निकाल कर नागर की उँगली में पहना दी। इसके बाद अपनी कमर से एक खंजर निकाला जो चपकन और अबा के अन्दर छिपा हुआ था। यह खंजर नागर की कमर में खोंसा और उसकी कमर से तिलिस्मी खंजर लेकर अपनी कमर में चपकन के अन्दर छिपा लिया। श्यामलाल ये दोनों चीजें निःसन्देह इसी काम के लिए तैयार करके ले आया था, क्योंकि वह खंजर और अंगूठी ठीक तिलिस्मी खंजर और अंगूठी के रंग-ढंग के ही थे, बहत गौर करने पर भी किसी तरह का शक नहीं हो सकता था।

खंजर और अँगूठी बदल लेने के बाद श्यामलाल ने वह खुशबूदार चिट्ठी भी नागर के हाथ से ले ली और उसके बदले में उसी तरह की दूसरी चिट्ठी उसके हाथ में रख दी। इस चिट्ठी में से भी उसी तरह की खुशबू आ रही थी। फर्क सिर्फ इतना ही था कि उसकी खुशबू बेहोशी पैदा करने वाली थी और इसकी खुशबू बेहोशी दूर करने की ताकत रखती थी अर्थात् लखलखे का काम देती थी।

इस काम से छुट्टी पाकर श्यामलाल पीछे हटा और अपने ठिकाने बैठ कर नागर के चैतन्य होने की राह देखने लगा। थोड़ी ही देर में नागर चैतन्य हो गई और आँखें खोल कर श्यामलाल की तरफ देख और उस चिट्ठी को पुनः सूंघ कर बोली, "बेशक खशबू बहुत ही अच्छी और प्रिय मालूम होती है, मगर मुझे क्या हो गया था! क्या मैं बेहोश हो गई थी?"

श्यामलाल-(हँस कर) वाह क्या खूब! केवल एक दफे आँख बन्द करके खोल देने का ही अर्थ अगर बेहोशी है, तो बस हो चुका, क्योंकि मेरी समझ में तुमने चार पल से ज्यादे देर तक आँख बन्द नहीं की, सो भी इस खुशबू से पैदा हुई मस्ती के सबब था।

नागर-(मुस्कराकर) अगर तुम मायारानी के बहनोई न होते तो मैं कुछ कह बैठती, क्योंकि ऐसे समय में जब कि जान बचाने की फिक्र पड़ रही है जैसा कि तुम स्वयं कह रहे हो तो इस तरह की दिल्लगी अच्छी नहीं मालूम पड़ती। अच्छा, अब मैं इस चिट्ठी को पढ़ कर देखती हूँ कि तुमने क्या लिखा है। (चिट्ठी को पढ़ कर) वाहवाह, इसका मतलब तो मेरी समझ में कुछ भी नहीं आता, मालूम होता है कि बहुत-सी पहेलियाँ लिख कर रखी हुई हैं!

श्यामलाल -- बस-बस, अब मुझे और भी निश्चय हो गया कि मायारानी तुम लोगों से मुँह-देखी मुहब्बत रखती है क्योंकि अगर वह तुम लोगों की कदर करती तो