पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/९०

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दिया जायेगा, तुमने पुनः पूछने में जितना समय नष्ट किया, समझ रखो कि उतने समय में दो आदमियों का बेड़ा पार हो गया। बस मैं फिर कहता हूँ कि अभी चले जाओ, मैं जो कुछ कहता हूँ तुम लोगों के भले ही के लिए कहता हूँ।

इस आये हुए आदमी की धमकी लिए हुए जल्दबाजी ने उस पहरे वाले को बल्कि और सिपाहियों को भी जो उस समय वहाँ मौजूद थे और उसकी बातें सुन रहे थे बदहवास कर दिया—फिर उससे कुछ पूछने की हिम्मत किसी की न पड़ी। वह सिपाही जिसके हाथ में चिट्ठी दी गई थी कुछ सोचता-विचारता बाग के अन्दर वाले मकान की तरफ रवाना हुआ और नजरों से गायब होकर आधे घण्टे तक न आया। तब तक वह आदमी जो चिट्ठी देने आया था फाटक ही में एक किनारे चुपचाप खड़ा रहा। सिपाहियों ने कुछ पूछना चाहा, मगर उसने किसी की बात का जवाब न दिया और सिर नीचा किये इस ढंग से जमीन को देखता रहा जैसे बड़े गौर और फिक्र में कुछ विचार कर रहा हो।

आधे घण्टे के बाद जब वह सिपाही लौट कर आया तो उसने आगन्तुक से कहा, "चलिए आपको नागर जी बुला रही हैं।"

आगन्तुक-(ताज्जुब से) नागरजी! क्या इस समय इस मकान में वही मालिक की तौर पर हैं? मैं तो मायारानी से मिलने की आशा रखता था!

सिपाही-इस समय नागरजी के सिवाय यहाँ और मालिक लोग नहीं हैं। क्या तुम्हारी चिट्ठी इस लायक न थी कि नागरजी के हाथ में दी जाती? क्योंकि मैंने देखा कि चिट्ठी पढ़ने के साथ ही फिक्र और तरवुद ने उनकी सूरत बदल दी।

आगन्तुक-नहीं कोई विशेष हानि नहीं है, खैर चलो मैं चलता हूँ।

वह आगन्तुक सिपाही के पीछे-पीछे उस मकान की तरफ रवाना हुआ, जो इस बाग के बीचोंबीच में था और क्यारियों के बीच बनी हुई बारीक सड़कों पर घूमता हुआ मकान के पिछली तरफ जा पहुँचा। इस जगह मकान के दोनों तरफ दो कोठरियाँ थीं, दाहिनी तरफ वाली कोठरी तो बन्द थी मगर बायीं तरफ वाली कोठरी का दरवाजा खुला हुआ था जौर भीतर चिराग जल रहा था। दोनों आदमी उस कोठरी के भीतर गये। वहाँ ऊपर की छत पर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी थीं, उसी राह से दोनों ऊपर की छत पर चले गये और एक कमरे में पहुँचे जहाँ सिवाय सफेद फर्श के और कोई सामान जमीन पर न था। सामने की दीवार में दो जोड़ी दीवारगीरों की थीं जिनमें मोटी-मोटी मोमबत्तियां जल रही थीं और उनकी रोशनी से इस कमरे में अच्छी तरह उजाला हो रहा था। इस कमरे में बायीं तरफ एक कोठरी थी जिसके दरवाजे पर लाल साटन का पर्दा पड़ा हुआ था। वह आदमी उसी पर्दे की तरफ मुँह करके खड़ा हो गया, क्योंकि इस कमरे में सिवाय इन दो आदमियों के और कोई भी न था।

इन दोनों आदमियों को बहुत थोड़ी देर तक वहाँ खड़े रहना पड़ा और इसी बीच में उस आदमी को जो चिट्ठी लाया था मालूम हो गया कि पर्दे के अन्दर से किसी ने उसे अच्छी तरह देखा है। थोड़ी देर में पर्दे के अन्दर से दो लौंड़ियाँ चुस्त और साफ पोशाक पहने हाथ में नंगी तलवार लिए बाहर निकलीं और इसके बाद उसी तरह की बेशकीमत पोशाक पहने नागर भी पर्दे के बाहर आई। उसकी कमर में वही तिलिस्मी