पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/८९

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। आज की रात मामूली से ज्यादा अंधेरी मालूम होती है क्योंकि आवोताव से चमक लेकर पाँचों सवारों में गिनती करने वाले तारों की थोड़ी रोशनी को दिन भर तेजी के साथ चले हुए हवा के झपेटों की सहायता से ऊपर की तरफ उठे हुए गर्द-गुबार ने अपना गेंदला शामियाना खींचकर जमीन तक आने से रोक रखा है। दिन भर के काम-काज से थके और आँधी के झोंकों तथा गर्द-गुबार से दुःखी आदमी इस समय सड़कों पर घूमना पसन्द न करके अपने-अपने झोंपड़ों, मकानों और महलों में आर कर रहे हैं इसलिए काशीपुरी के बाहरी प्रान्त की सड़कों पर कुछ विचित्र-सा सन्नाटा छाया हुआ है। केवल एक आदमी शहर की हद पर बहने वाली बर्ना नदी पार करके त्रिलोचन महादेव की तरफ तेजी के साथ बढ़ा चला जाता है और उसे टोकने या देखने वाला कोई भी नहीं। यह आदमी आधी रात के पहले ही मनोरमा के मकान के पास जा पहुँचा, जिसमें इस समय केवल नागर रहती थी। यहाँ पहुँच वह सीधे फाटक की तरफ चला गया। देखा कि फाटक बन्द है मगर उसकी छोटी खिड़की अभी तक खुली हुई है और उस राह से झाँक कर देखने से मालूम होता है कि भीतर की तरफ दो आदमी टहल-टहल कर पहरा दे रहे हैं।

वह आदमी बेधड़क छोटी खिड़की की राह से भीतर घुस गया और दोनों पहरा देनेवालों से बिना साहब-सलामत किये या बिना कुछ कहे अपनी जेब टटोलने लगा। एक पहरे वाले ने ताज्जुब में आकर उससे पूछा, "तुम कौन हो और क्या चाहते हो?" इसके जवाब में आगन्तुक ने एक चिट्ठी उसके हाथ पर रखकर कहा, “यह चिट्ठी बहुत जल्द उसके हाथ में दो, जो इस मकान में सबका सरदार मौजूद हो।"

सिपाही-पहले तुम अपना नाम बताओ और यह कहो कि तुम किसके भेजे हुए आये हो और इस चिट्ठी का मतलब क्या है?

आगन्तुक -तुम अपनी बातों का जवाब मुझसे नहीं पा सकते और न इस चिट्ठी के पहुँचाने में विलम्ब कर सकते हो, ताज्जुब नहीं कि तुम सफाई के साथ यह कहो कि मकान मालिक इस समय आराम के साथ खर्राटे ले रहा है और हम उसे जगा नहीं सकते मगर याद रखो कि यह समय बड़ा ही नाजुक बीत रहा है और एक पल भी व्यर्थ जाने देने लायक नहीं है, अगर तुम मुझसे कुछ पूछताछ करोगे तो मैं बिना कुछ जवाब दिये यहाँ से चला जाऊँगा और इसका नतीजा बहुत बुरा होगा, क्योंकि सवेरा होने से पहले इस मकान में रहने वाले जितने हैं सब-के-सब यमलोक को सिधार जायेंगे और सब कसूर तुम्हारा ही समझा जायेगा। खैर मुझे इन बातों से क्या मतलब, लो मैं जाता हूँ।

सिपाही--सुनो-सुनो, लौटे क्यों जाते हो, मैं यह चिट्ठी अभी अपने मालिक के पास पहुँचाए देता हूँ, मगर यह तो बताओ कि ऐसी कौन-सी आफत आने वाली है और उसका क्या सबब है?

आगन्तुक-मैं पहले ही कह चुका हूँ कि तुम्हारी बातों का कुछ जवाब नहीं