पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/८६

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के हट जाने से खुलता है और तख्ता एक कमानी के सहारे पर है। खैर ताला बन्द कर देने के बाद मैंने जानबूझ कर एक शीशा जमीन पर गिरा दिया जिसकी आवाज से मायारानी चौंक उठी। अँधेरे के कारण सुरत तो दिखाई नहीं देती थी इसलिए मैं नहीं कह सकता कि उसने क्या-क्या किया मगर इसमें कोई सन्देह नहीं कि वह बहुत ही घबराई होगी और वह घबराहट उसकी उस समय और भी बढ़ गई होगी, जब दरवाजे के पास पहुँच कर उसने देखा होगा कि वहाँ ताला बन्द है। मैं पैर पटक-पटककर कमरे में घूमने लगा। थोड़ी देर में टटोलता हुआ मायारानी के पास पहुँचकर मैंने उसकी कलाई पकड़ ली और जब वह चिल्लाई तो एक तमाचा जड़ के अलग हो गया। तब मैंने एक एक चोर लालटेन जलाई जो मेरे पास थी। उस समय तक मायारानी डर और मार खाने के कारण बेहोश हो चुकी थी। मैंने दरवाजे का ताला खोल दिया और उसे उठा कर चारपाई पर लिटा देने के बाद वहाँ से चलता बना। यह कार्रवाई इसलिए की गई थी कि मायारानी घबराकर बाहर निकले और उसकी लौंडियाँ इस घटना का पता लगाने के लिए चारों तरफ घूमें जिससे आगे हम लोग जो कुछ करेंगे उसकी खबर मायारानी को लग जाय। इसके बाद मैं और भूतनाथ एक नियत स्थान पर उस मालिन से जाकर मिले और उससे बोले कि आज तो कमलिनी नहीं आ सकी मगर कल आधी रात को जरूर आवेगी, चोर दरवाजा खुला रखियो! बेशक इस बात की खबर मायारानी को लग गई जैसा कि हम लोग चाहते थे, क्योंकि दूसरे दिन जब हम लोग चोर दरवाजे की राह बाग में पहुँचे तो हम लोगों को गिरफ्तार करने के लिए कई आदमी मुस्तैद थे।

ऊपर लिखे हुए बयान से पाठक इतना तो जरूर समझ गये होंगे कि मायारानी के बाग में पहुँचने वाले दोनों नकाबपोश जिनका हाल सन्तति के नौवें भाग के चौथे और सातवें बयान में लिख गया है ये ही राजा गोपालसिंह और भूतनाथ थे, इसलिए उन दोनों ने और जो कुछ काम किया उसे इस जगह दोहरा कर लिखना हम इसलिए उचित नहीं समझते कि वह हाल पाठकगण पढ़ ही चुके हैं और उन्हें याद होगा। अस्तु यहाँ केवल इतना ही कह देना काफी है कि ये दोनों गोपालसिंह और भूतनाथ थे और राजा गोपालसिंह ने ही कोठरी के अन्दर बारी-बारी से पाँच-पांच आदमियों को बुलाकर अपनी सूरत दिखाई और कुछ थोड़ा-सा हाल भी कहा था।

राजा गोपालसिंह ने यह सब पूरा-पूरा हाल तेजसिंह और भैरोसिंह से कहा और देर तक वे सुन-सुनकर हँसते रहे। इसके बाद देवीसिंह और भूतनाथ ने भी अपनी कार्रवाई का हाल कहा और फिर इस विषय में बातचीत होने लगी कि अब क्या करना चाहिए।

तेजसिंह-(गोपालसिंह से) अब आप खुले दिल से अपने महल में जाकर राज्य का काम कर सकते हैं इसलिए अब जो कुछ आपको करना है, हुकूमत के साथ कीजिए। ईश्वर की कृपा से अब आपको किसी तरह की चिन्ता न रही इसलिए इधर-उधर ..

गोपालसिंह --यह आप नहीं कह सकते कि अब मुझे किसी तरह की चिन्ता नहीं, मगर हाँ बहुत-सी बातें जिनके सबब से मैं अपने महल में जाने से हिचकता था जाती