पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/८३

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गोपालसिंह—मेरा भी दिल यही गवाही देता है, मगर अफसोस की बात है कि उसने मुझ तक पहुँचने या इस भेद को खोलने के लिए कुछ उद्योग न किया।

कमलिनी-यह आप कैसे कह सकते हैं कि उसने कोई उद्योग न किया होगा? कदाचित् उसका उद्योग सफल न हुआ हो? इसके अतिरिक्त मायारानी की और दारोगा की चालाकी कुछ इतनी कच्ची न थी कि किसी की कलई चल सकती, फिर उस बेचारी का क्या कसूर? जब मैं उसकी सगी बहिन होकर धोखे में फंस गई और इतने दिनों तक उसके साथ रही तो दूसरे की क्या बात है? उसके ब्याह के चार वर्ष बाद जब मैं मातापिता के मर जाने के कारण लाड़िली को साथ ले कर आपके घर आई तो मायारानी की सूरत देखते ही मुझे कुछ शक पड़ा, परन्तु इस खयाल ने उस शक को जमने न दिया कि कदाचित् चार वर्ष के अन्तर ने उसकी सूरत-शक्ल में इतना फर्क डाल दिया हो और यह आश्चर्य की बात है भी नहीं, बहुतेरी कुँआरी लड़कियों की सूरत-शक्ल ब्याह होने के तीन या चार वर्ष बाद ही ऐसी बदल जाती है कि पहचानना कठिन होता है।

तेजसिंह-प्रायः ऐसा होता है, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है!

कमलिनी--और कम्बख्त ने हम दोनों बहिनों की उतनी ही खातिर की जितनी कोई बहिन किसी बहिन की कर सकती है। मगर यह बात भी तभी तक रही जब तक उसने (गोपालसिंह की तरफ इशारा करके) इनको कैद नहीं कर लिया।

गोपालसिंह-मेरे साथ तो रस्म और रिवाज ने दगा की! व्याह के पहले मैंने उसे देखा ही न था, फिर पहचानता क्योंकर?

कमलिनी-बेशक बड़ी चालाकी खेली गई। हाय, अब मैं बहिन लक्ष्मीदेवी को कहाँ ढूंढें और कैसे पाऊं?

तेजसिंह-जिस ढंग से मायारानी ने मुझे समझाया था, उससे तो मालूम होता है कि यह चालाकी करने के साथ ही दारोगा ने लक्ष्मीदेवी को कैद करके किसी गुप्त स्थान में रख दिया था, मगर कुछ दिनों के बाद वह किसी ढंग से छूट के निकल गई। शायद इसी सबब से वह कमलिनी या लाड़िली से न मिल सकी हो।

गोपालसिंह-बिना दारोगा को सताये इसका पूरा हाल मालूम नहीं होगा।

तेजसिंह-दारोगा तो रोहतासगढ़ में ही कैद है।

इतने ही में एक तरफ से आवाज आई, "दारोगा अब रोहतासगढ़ में कैद नहीं है, निकल भागा।" तेजसिंह ने घूमकर देखा तो भैरोंसिंह पर निगाह पड़ी। भैरोंसिंह ने पिता के चरण छूए और राजा गोपालसिंह को भी प्रणाम किया, इसके बाद आज्ञा पाकर बैठ गया।

तेजसिंह–(भैरोंसिंह से) क्या तुम बड़ी देर से खड़े-खड़े हम लोगों की बातें सुन रहे थे? हम लोग बातों में इतना डूबे हुए थे कि तुम्हारा आना जरा भी मालूम न हुआ।

भैरोंसिंह-जी नहीं, मैं अभी-अभी चला आ रहा हूँ और सिवाय इस आखिरी बात के, जिसका जवाब दिया है, आप लोगों की और कोई बात मैंने नहीं सुनी।

तेजसिंह-तुम्हें यह कैसे मालूम हुआ कि हम लोग यहाँ हैं?