अपने-बेगाने की कुछ खबर ही नहीं रहती! मैं यह बात दिल्लगी से नहीं कहता, बल्कि साबित कर दूँ कि आप भी उन्हीं में अपनी गिनती करा चुके हैं। सच तो यों है कि इस समय आपके पेट में चूहे कूदते होंगे, और यह जानने के लिए आप बहुत ही बेताब होंगे
कि मैं आपसे क्या पूछँगा और क्या कहूँगा। अच्छा आप यह बताइये कि 'लक्ष्मीदेवी' किसका नाम है?
गोपालसिंह—क्या आप नहीं जानते? यह तो उसी कम्बख्त मायारानी का नाम है।
तेजसिंह―बस-बस-बस! अब आपकी जुबानी मुझे उस बात का पता लग गया जिसे मैं एक भारी खुशखबरी समझता हूँ। अब आप सुनिये, (कुछ रुककर) मगर नहीं, पहले आपसे इनाम पाने का इकरार तो करा ही लेना चाहिए, क्योंकि खाली तारीफों की बौछार से काम न चलेगा।
गोपालसिंह―मैं आपको कुछ इनाम देने योग्य तो हूँ नहीं, पर यदि आप मुझे इस योग्य समझते ही हैं तो इनाम का निश्चय भी आप ही कर लीजिए, मुझे जी-जान से उसे पूरा करने के लिए तैयार पाइएगा।
तेजसिंह―(हाथ फैलाकर) अच्छा, तो आप हाथ पर हाथ मारिये, मैं अपना इनाम जब चाहूँगा, माँग लूँगा और आप उस समय उसे देने योग्य होंगे।
गोपालसिंह―(तेजसिंह के हाथ पर हाथ मार के) लीजिए अब तो कहिए, आप तो हम लोगों की बेचैनी बढ़ाते ही जा रहे हैं।
तेजसिंह―हाँ-हाँ, सुनिये। (कमलिनी और लाड़िली से) तुम दोनों भी जरा पास आ जाओ और ध्यान देकर सुनो कि मैं क्या कहता हूँ। (हँसकर) आप लोग बड़े खुश होंगे। हाँ, अब आप सब बैठ जाइये।
गोपालसिंह―(बैठकर) तो आप कहते क्यों नहीं, इतना नखरा-तिल्ला क्यों कर रहें हैं।
तेजसिंह―इसलिए कि खुशी के बाद आप लोगों को रंज भी होगा और आप लोग एक तरद्दुद में फँस जायेंगे
गोपालसिंह―आप तो उलझन पर उलझन डाले जाते हैं और कुछ कहते भी नहीं।
तेजसिंह―कहता तो हूँ, सुनिए—यह जो मायारानी है वह असल में आपकी स्त्री लक्ष्मीदेवी नहीं है।
इतना सुनते ही राजा गोपालसिंह, कमलिनी और लाड़िली को हद से ज्यादा खुशी हुई, यहाँ तक कि दम रुकने लगा और थोड़ी देर तक कुछ कहने की सामर्थ्य न रह गयी। इसके बाद अपनी अवस्था ठीक करके कमलिनी ने कहा।
कमलिनी―ओफ, आज मेरे सिर से बड़े भारी कलंक का टीका मिटा। मैं इस ताने के सोच में मरी जाती थी कि तुम्हारी बहिन जब इतनी दुष्ट है तो तुम न जाने कैसी होगी!
गोपालसिंह―मैं जिस खयाल से लोगों को अपना मुँह दिखाने से हिचकिचाता