रहे। देवी सिंह के साथ चलकर तेजसिंह थोड़ी ही देर में वहां जा पहुँचे, जहाँ गोपालसिंह इत्यादि घने जंगल में एक पेड़ के नीचे बैठे इनके आने की राह देख रहे थे। तेजसिंह को देखते ही सब लोग उठ खड़े हुए और खातिर की तौर पर दो-चार कदम आगे बढ़ आये।
देवीसिंह-देखिए, इन्हें कितना जल्द ढूंढ़ लाया हूँ। गोपालसिंह-(तेजसिंह से) आइये-आइये। तेजसिंह-इतनी दूर आये तो क्या दो-चार कदम के लिए रुके रहेंगे?
गोपालसिंह-(हँस के और तेजसिंह का हाथ पकड़ के) आज आप ही की बदौलत हम लोग जीते-जागते यहाँ दिखाई दे रहे हैं।
तेजसिंह-यह सब तो भगवती की कृपा से हुआ और उन्हीं की कृपा से इस समय मैं इसके लिए अच्छी तरह तैयार भी हो रहा हूँ कि मेरी जितनी तारीफ आपके किये हो सके कीजिये और मैं फूला नहीं समाता हुआ चुपचाप बैठा सुनता रहूँ और घण्टों बीत जायें, मगर तिस पर भी आपकी की हुई तारीफ को उस काम के बदले में न समझूँ, जिसकी वजह से आप लोग छूट गये, बल्कि एक दूसरे ही काम के बदले में समझूँ, जिसका पता खुद आप ही की जुबान से लगेगा और यह भी जाना जायगा कि मैं कौन-सा अनूठा काम करके आया हूँ, जिसे खुद नहीं जानता, मगर जिसके बदले में तारीफों की बौछार सहने को चुप्पी का छाता लगाये पहले ही से तैयार था। साथ ही इसके यह भी कह देना अनुचित न होगा कि मैं केवल आप ही को तारीफ करने के लिए मजबूर न या बल्कि आपसे ज्यादा कमलिनी और लाडिली को मेरी तारीफ करनी पड़ेगी।
गोपालसिंह—(कुछ सोचकर और हँसी के ढंग से) अगर गुस्ताखी और बेअदबा में न गिनिये तो मैं पूछ लूँ कि आज आपने भंग के बदले में ताड़ी तो नहीं छानी है?
यद्यपि यह जंगल बहुत ही घना और अंधकारमय हो रहा था, मगर तेजसिह को साथ लिए देवीसिंह के आने की आहट पाते ही भूतनाथ ने बटुए में से एक छोटी-सी अबरख की लालटेन जो मोड़माड़ के बहुत छोटी और चिपटी कर ली जाती थी, निकाल ली थी और रोशनी के लिए तैयार बैठा था। देवीसिंह की आवाज पाते ही उसने बत्ती बाल कर उजाला कर दिया था, जिससे सभी की सूरत साफ-साफ दिखाई दे रही थी। तेजसिंह की इज्जत के लिए सब कोई उठकर दो-चार कदम आगे बढ़ गये थे, और इसके बाद मायारानी का समाचार जानने की नीयत से सभी ने उन्हें घेर लिया था। तेजसिंह के चेहरे पर खुशी की निशानियाँ मामूली से ज्यादा दिखाई दे रही थीं, इसलिए गोपालसिंह इत्यादि किसी भारी खुशखबरी के सुनने की लालसा मिटाने का उद्योग करना चाहते थे। मगर तेजसिंह की रेशम की गुत्थी की तरह उलझी हुई बातों को सुनकर गोपालसिंह भौचक से हो गये और सोचने लगे कि वह कैसी खुशखबरी है कि जिसे तेजसिंह स्वयं नहीं जानते, बल्कि मुझसे ही सुनकर मुझी को सुनाने और खुश करके तारीफों की बौछार सहने के लिए तैयार हैं, और यही सबब था कि राजा गोपालसिंह ने दिल्लगी के साथ तेजसिंह पर भंग के बदले में ताड़ी पीने की आवाज कसी।
तेजसिंह-(हँसकर) ताड़ी और शराब पीना तो आप लोगों का काम है जिन्ह