पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/६४

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बाबा-और तुझे इसलिए यहाँ छोड़ गई कि जब मैं आऊँ तो बातें बनाकर मेरे क्रोध को बढ़ावे!

लौंडी-जी ई ई ई...

बाबा-जी ई ई ई क्या? बेशक यही बात है! खैर, अब तू भी यहाँ से वहीं चली जा और कम्बख्त मायारानी से जाकर कह दे कि जो कुछ तूने किया, बहुत अच्छा किया, मगर इस बात को खूब याद रखना कि नेकी का नतीजा नेक है और बद को कभी सुख की नींद सोना नसीब नहीं होता। अच्छा ठहर, मैं एक चिट्ठी लिख देता हूँ सो लेती जा और जहां तक जल्द हो सके, मिलकर मायारानी के हाथ दे दे।

इतना कहकर बाबाजी बैठ गए और अपने बटुए से सामान निकालकर चिट्ठी लिखने लगे, जब चिट्ठी लिख चुके तो उसे लौंडी के हाथ में दे दिया और आप उत्तर तरफ रवाना हो गये।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह लौंडी बाबाजी की चिट्ठी लिए हुए काशीजी जायेगी और मायारानी से मिलकर चिट्ठी उसके हाथ में देगी मगर हम आपको अपने साथ लिए हुए पहले ही काशीजी पहुँचते हैं और देखते हैं कि मायारानी किस धुन में कहाँ बैठी है या क्या कर रही है।

रात पहर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा वाले मकान के अन्दर एक सजे हुए कमरे में मायारानी नागर के साथ बैठी हुई कुछ बात कर रही है। इस समय कमरे में सिवाय नागर और मायारानी के और कोई नहीं है। कमरे में यद्यपि बहुत से बेशकीमती शीशे करीने के साथ लगे हुए हैं, मगर रोशनी दो दीवारगीरों में और एक सब्ज कंवल वाले शमादान में, जो मायारानी के सामने गद्दी के नीचे रखा हुआ है, हो रही है। मायारानी सब्ज मखमल की गद्दी पर गाव-तकिये के सहारे बैठी है। इस समय उसका खूबसूरत चेहरा, जो आज से तीन-चार दिन पहले उदासी और बदहवासी के कारण बेरौनक हो रहा था, खुशी और फतहमन्दी की निशानियों के साथ दमक रहा है और वह किसी सवाल का इच्छानुसार जवाब पाने की आशा में मुस्कुराती हुई नागर की तरफ देख रही है।

नागर-इसमें तो कोई सन्देह नहीं कि एक भारी बला आपके सिर से टली है, परन्तु यह न समझना चाहिए कि अब आपको किसी आफत का सामना न करना पड़ेगा।

मायारानी-इस बात को मैं जानती हूँ कि जमानिया की गद्दी पर बैठने के लिए अब भी बहुत-कुछ उद्योग करना पड़ेगा, मगर मैं यह कह रही हैं कि सबसे भारी बला जो थी, वह टल गई। कम्बख्त कमलिनी ने भी बड़ा ही ऊधम मचा रखा था, अगर वह वीरेन्द्रसिंह की पक्षपाती न होती, तो मैं कभी का दोनों कमारों को मौत की नींद सुला चुकी होती।

नागर-बेशक! बेशक!

मायारानी-और भूतनाथ का मारा जाना भी बहुत अच्छा हुआ, क्योंकि उसे इस मकान का बहुत-कुछ भेद मालूम हो चुका था और इस सबब से इस मकान के रहने वाले भी बेफिक्र नहीं रह सकते थे। मगर देखो तो सही रामजादे दीवान को क्या हो