मायारानी-बस-बस यही है, कैदी और कैदखाने की क्या बात इस बंगले का ही सत्यानाश कर दूँगी। कैदियों की हड्डी तक का तो पता लगेगा ही नहीं! अच्छा अब इस काम में विलम्ब न करना चाहिए, उठो और मेरे साथ चलकर उस कोठरी में अर्थात् मैगजीन में कोई ऐसी चीज रखो जो उस वक्त बारूद में आग लगावे, जब हम लोग यहाँ से निकल कर कुछ दूर चली जायें।
नागर-ऐसा ही होगा, यह कोई मुश्किल बात नहीं है।
कल शाम को बाबाजी जमानिया गए थे और आज शाम होने के दो घंटे पहले ही लौट आये। दूर ही से अपने बँगले की हालत देख सिर हिलाकर बोले, "मैं उसी समय समझ गया था जब मायारानी ने कहा था कि कैदियों को मैगजीन के बगल वाले तहखाने में कैद करना चाहिए।"
बाबाजी का बँगला जो बहुत ही खूबसूरत और शौकीनों के रहने के लायक था, बिल्कुल बर्बाद हो गया था, बल्कि यों कहना चाहिए कि उसकी एक-एक ईंट अलग हो गई थी। बाबाजी धीरे-धीरे उसके पास पहुंचे और कुछ देर तक गौर से देखने के बाद यह कहते हुए घूम पड़े कि "जो हो मगर अजायबघर किसी तरह बर्बाद नहीं हो सकता"
बाबाजी के बँगले के बर्बाद होने का सबब पाठक समझ ही गये होंगे, क्योंकि ऊपर के बयान में मायारानी और नागर की बातचीत से वह भेद साफ-साफ खल चुका है। अब बाबाजी इस विचार में पड़े कि मायारानी को ढूंढकर उससे दो-दो बातें करनी चाहिए।
ऐसा करने में बाबाजी को विशेष तकलीफ नहीं उठानी पड़ी, क्योंकि थोड़ी ही दूर पर उन्हें उन लौंडियों में से एक लौंडी मिली जो उस समय मायारानी के साथ थी, जब बाबाजी कैदियों को तहखाने में बन्द करके दीवान से मिलने के लिए जमानिया की तरफ रवाना हुए थे। बाबाजी ने उस लौंडी से केवल इतना ही पूछा, "मायारानी कहाँ हैं?"
लौंडी-जब आप जमानिया की तरफ चले गये तो मायारानी हम लोगों को साथ लेकर दिल बहलाने के लिए इस जंगल में टहलने लगीं और धीरे-धीरे यहाँ से कुछ दूर चली गईं। ईश्वर ने बड़ी कृपा की कि रानी साहिबा के दिल में यह बात पैदा हुई नहीं तो हम लोग भी टुकड़े-टुकड़े होकर उड़ गए होते, क्योंकि थोड़ी ही देर बाद भयानक आवाज सुनने में आई, और जब हम लोग इस बँगले के पास आये तो मिट्टी और गर्द के सबब अन्धकार हो रहा था। हम लोग डर कर पीछे की तरफ हट गये और अन्त में इस बँगले की ऐसी अवस्था देखने में आई जो आप देख रहे हैं। लाचार मायारानी ने यहाँ ठहरना उचित न समझा और नागर के साथ काशीजी की तरफ रवाना हो गईं।