पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/६०

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ले रहा था मगर कोई चीज मेरे मतलब की न निकली।"

इस समय मायारानी का चेहरा फतहमन्दी की खुशी से दमक रहा था। उसे केवल इसी बात की खुशी न थी कि उसने राजा गोपालसिंह और अपनी दोनों बहिनों तथा ऐयारों को कैद कर लिया था बल्कि उसकी खुशी का सबब कुछ और भी था। थोड़ी ही देर पहले उसे इस बात का रंज था कि कम्बख्त दारोगा ने यकायक पहुँच कर हमारे काम में विघ्न डाल दिया नहीं तो गोपालसिंह तथा कमलिनी और लाड़िली को मारकर मैं हमेशा के लिए निश्चिन्त हो जाती मगर अब उसे इन बातों का रंज नहीं है और यह उसकी मुस्कुराहट से साफ जाहिर हो रहा है।


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शाम होने में कुछ भी बिलम्ब नहीं है। सूर्य भगवान अस्त हो गये केवल उनकी लालिमा आसमान के पश्चिम तरफ दिखाई दे रही है। दारोगा वाले बंगले में रहने वालों के लिए यह अच्छा समय है परन्तु आज उस बँगले में जितने आदमी दिखाई दे रहे हैं वे सब इस योग्य नहीं हैं कि बेफिक्री के साथ इधर-उधर घूमें और इस अनूठे समय का आनन्द लें। यद्यपि राजा गोपालसिंह, कमलिनी और लाड़िली की तरफ से मायारानी निश्चिन्त हो गई बल्कि उनके साथ ही साथ दो ऐयारों को भी उसने गिरफ्तार कर लिया है मगर अभी तक उसका जी ठिकाने नहीं हुआ। वह नहर के किनारे बैठी हुई बाबाजी से बातें कर रही है और इस फिक्र में है कि कोई ऐसी तरकीब निकल आवे कि जमानिया की गद्दी पर बैठ कर उसी शान के साथ हुकूमत करे, जैसा कि आज के कुछ दिन पहले कर रही थी। उसके पास केवल नागर बैठी हुई दोनों की बातें सुन रही है।

मायारानी—जिस दिन से आपको वीरेन्द्रसिंह ने गिरफ्तार कर लिया उसी दिन से मेरी किस्मत ने ऐसा पलटा खाया कि जिसका कोई हदहिसाब नहीं, मानो मेरे लिए जमाना ही और हो गया। एक दिन भी सुख के साथ सोना नसीब न हुआ। मुझ पर मसीबतें आई और तिलिस्मी बाग के अन्दर जो-जो अनहोनी बातें हुईं उनका खुलासा हाल आज मैं आपसे कह चुकी हूँ। इस समय यद्यपि राजा गोपालसिंह, कमलिनी और लाड़िली की तरफ से निश्चिन्त हूँ मगर फिर भी अपनी अमलदारी में या तिलिस्मी बाग के अन्दर जाकर रहने का हौसला नहीं पड़ता, क्योंकि तिलिस्मी बाग के अन्दर दोनों नकाबपोशों के आने और धनतपत का भेद खुल जाने से हमारे सिपाहियों की हालत बिल्कुल ही बदल गई है और मुझे उनके हाथों से दुःख भोगने के सिवाय और किसी तरह की उम्मीद नहीं है। यह भी सुनने में आया है कि दीवान साहब मुझे गिरफ्तार करने की फिक्र में पड़े हुए हैं।

बाबा-दीवान जो कुछ कर रहा है उससे मालूम होता है कि या तो उसे राजा गोपालसिंह का असल-असल हाल मालूम हो गया है और वह उन्हें फिर जमानिया की