पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/६

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चन्द्रकान्ता सन्तति

नौवाँ भाग

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अब वह मौका आ गया है कि हम अपने पाठकों को तिलिस्म के अन्दर ले चलें और वहाँ की सैर करावें, क्योंकि कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह तथा मायारानी तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जा विराजे हैं जिसे एक तरह तिलिस्म का दरवाजा कहना चाहिए। ऊपर के भाग में यह लिखा जा चुका है कि भैरोंसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ और राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ रवाना करने के बाद इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह, तेजसिंह, तारासिंह, शेरसिंह और लाड़िली को साथ लिए हुए कमलिनी तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जा पहुँची और उसने राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार देवमन्दिर में, जिसका हाल आगे चलकर खुलेगा, डेरा डाला। हमने कमलिनी और कुँअर इन्द्रजीतसिंह वगैरह को दारोगा वाले मकान के पास के एक टीले पर ही पहुँचा कर छोड़ दिया था और यह नहीं लिखा कि वे लोग तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में किस राह से पहुँचे या वह रास्ता किस प्रकार का था। खैर, हमारे पाठक महाशय ऐयारों के साथ कई दफा उस तिलिस्मी बाग में जायँगे इसलिए वहाँ के रास्ते का हाल उनसे छिपा न रह जायगा।

तिलिस्मी बाग का चौथा दर्जा अद्भुत और भयानक रस का खजाना था। वहाँ का पूरा हाल तो तब मालूम होगा जब तिलिस्म बखूबी टूट जायगा मगर जाहिरा हाल जिसे कुँअर इन्द्रजीतसिंह और उनके साथियों ने वहाँ पहुँचने के साथ ही देखा, हम इस जगह लिख देते हैं।

उस हिस्से में फूल-फल और पत्तों की किस्म में से ऐसा कुछ विशेष न था जिससे हम उसे बाग कहते, हाँ चारों तरफ तरह-तरह की इमारतें जरूर बहुतायत से बनी हुई थीं जिनका हाल हम उस देवमन्दिर को मध्य मान कर लिखते हैं जिसमें इस समय हमारे दोनों कुमार और दोनों नेक दिल खैरख्वाह और मुहब्बत का नायाब नमूना दिखानेवाली नायिकाएँ तथा उनके साथी लोग विराज रहे हैं। जैसा कि नाम से समझा जाता है वह देवमन्दिर वास्तव में कोई मन्दिर या शिवालय नहीं था, वह केवल सुर्ख पत्थर का बना