बाबाजी की राय हुई कि पांचों कैदियों को अजायबघर की ड्योढ़ी में बन्द करना चाहिए मगर मायारानी ने कुछ सोच-विचार कर कहा कि इन सब लोगों को मैगजीन के बगल वाले तहखाने में कैद करना चाहिए। मायारानी की बात सुनकर बाबाजी के होठ फड़कने लगे और माथे पर दो एक बल पड़ गये, जिससे मालूम होता था कि उनको क्रोध चढ़ आया है मगर उन्होंने बहाने के साथ दूसरी तरफ देखकर बहुत जल्द अपने को सम्हाला जिसमें सूरत देखकर मायारानी को उनके दिल का हाल कुछ मालूम न हो। बाबाजी को चप देखकर मायारानी ने फिर टोका और कहा कि कैदियों को मैगजीन के बगल वाले तहखाने में बन्द करना उचित होगा, जिस पर बाबाजी ने हंसकर जवाब दिया, "बहुत अच्छा, जो तुम कहती हो वही होगा।"
हम ऊपर लिख आये हैं कि इस मकान के चारों कोनों में चार कोठरियाँ और चारों तरफ चार दालान हैं। बंगले में जाने के लिए जो सदर दरवाजा है, उसके बाईं तरफ वाली कोठरी के नीचे दो तहखाने हैं। एक तो मैगजीन के नाम से पुकारा जाता हैं और उसमें बारूद तथा छोटी-छोटी कई तोपें रखी हुई हैं, और उसी के साथ सटा हुआ जो दूसरा तहखाना है उसमें बाबाजी का खजाना रहता है। उसी खजाने वाले तहखाने में कैदियों को कैद करने की राय मायारानी ने दी थी और बाबाजी ने भी यह बात मंजूर कर ली।
बाबाजी उस कोठरी के अन्दर गये। वहाँ दोनों तरफ की दीवारों में लोहे के दो दरवाजे थे जिन्हें दोनों तहखानों का दरवाजा कहना चाहिए। दाहिनी तरफ के दरवाजे को किसी गुप्त रीति से बाबाजी ने खोला और नागर, लीला तथा लौंडियों की मदद से पांचों कैदियों को उनके ऐयारी के बटुए सहित तहखाने में पहुँचा कर बाहर निकल आये और दरवाजा बन्द कर दिया। बाहर निकलते समय तहखाने से ताँबे का एक घड़ा भी लेते आये और मायारानी की तरफ देखकर बोले, "अब कैदियों के लिए कुछ खाने-पीने का सामान भी कर देना चाहिए, इसी घड़े में भरकर जल और थोड़े से जंगली फल वहाँ रखवा देता हूँ, जो तीन दिन के लिए काफी होगा, फिर देखा जायेगा।" (लौंडियों की तरफ देखकर) "जाओ तुम लोग थोड़े से फल बहुत जल्द तोड़ लाओ।" आज्ञानुसार लौंडियां चारों तरफ चली गईं और बात-की-बात में बहुत से फल तोड़ कर ले आई। एक कपडे में बांध कर वही फल और जल से भरा हुआ घड़ा हाथ में लिए हए बाबाजी फिर उसी तहखाने में उतरे मगर अबकी दफे किसी को साथ न ले गये, बल्कि अन्दर जाती दफे दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया और आधी घड़ी से ज्यादा देर के बाद तहखाने से बाहर निकले। मायारानी ने ताज्जुब में आकर पूछा कि 'आपको तहखाने में इतनी देर क्यों लगीं?" इसके जवाब में बाबाजी ने कहा- "कैदियों के बटुओं की तलाशी
1.अजायबघर की ड्योढ़ी उसी कोठरी से मुराद है जिस में धनपत और मायारानी को भूतनाथ उस समय ले गया था जब राजा गोपालसिंह को मारने का वादा किया था। उसी कोठरी में राजा गोपालसिंह की नकली लाश दिखाई गई थी। देखिये चन्द्रकान्ता सन्तति, आठवा भाग, ग्यारहवाँ बयान।