पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/५०

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बटुए की तलाशी ली, मगर उसमें कोई ऐसी चीज न निकली जो मायारानी के काम की होती। यद्यपि तरह-तरह की दवाओं और मसालों से भरी हुई कई खूबसूरत डिबियाएँ नजर आईं, मगर उनका गुण न मालूम होने के कारण मायारानी के लिए वे बिल्कुल ही बेकार थीं। जब वटुए में से अपने मतलब की कोई चीज न पाई तो कमर और कपड़ों की जेबें आदि भी अच्छी तरह टटोलीं, मगर उससे भी कुछ काम न चला। अन्त में उदास होकर वह राजा गोपालसिंह की तरफ लौटी और उनकी तलाशी लेने लगी।

ऊपर का बयान पढ़ने से पाठकों को मालूम हो ही चुका होगा कि अजायबघर की ताली, जो मायारानी ने भूतनाथ को दी थी, वह राजा गोपालसिंह ने भूतनाथ से ले ली थी। इस समय वही अजायबघर की ताली राजा गोपालसिंह के पास थी जो तलाशी लेने के समय मायारानी के हाथ लगी। ताली पाकर वह बहुत खुश हुई और नागर की तरफ देखकर बोली

मायारानी-लीजिए, अजायबघर की ताली तो मिल गई। अब कोई परवाह नहीं। यद्यपि मुझे मालूम हो चुका है कि मेरी फौज मुझसे बिगड़ गई, मेरा दीवान मुझसे दुश्मनी करने को तैयार है, तुम्हारे मकान का भेद वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों को मालूम हो चुका है और इस सबब से मुझे रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं है, मगर अब अजायबघर की ताली मिल जाने से मुझे बहुत-कुछ भरोसा हो गया। मैं अब खुशी से दारोगा वाले बँगले में रहकर अपने दुश्मनों से बदला ले सकती हूँ, फौजी सिपाहियों के दिल से शक दूर करके अपना रुआब जमा सकती हूँ और उन्हें ठीक करके अपने ढर्रे पर ला सकती हूँ। कम्बख्त दीवान को भी सजा देना कोई बड़ी बात नहीं है। इसके सिवाय तिलिस्मी खंजर की बदौलत मुश्किल से मुश्किल काम सहज ही में कर सकूँगी!

नागर-ठीक है, अच्छा देखिये, शायद रिक्तगंथ भी इन लोगों में से किसी के पास हो। मायारानी ने फिर तलाशी लेना शुरू किया। गोपालसिंह के बाद कमलिनी, लाड़िली और देवीसिंह की भी तलाशी ली, मगर रिक्तगन्थ (खून से लिखी किताब) का पता न लगा और न कोई ऐसी चीज ही मिली जो मायारानी के मतलब की होती। आखिर लाचार होकर यह निश्चय किया कि भूतनाथ को होश में लाकर और डरा-धमका कर दरवाजा खोलने की तरकीब जाननी चाहिए। मायारानी की आज्ञानुसार नागर ने अपने बटए में से लखलखा निकाला और भूतनाथ को सुंघाने के लिए आगे बढ़ी ही थी सुरंग के सिरे पर (जिधर से भूतनाथ और देवीसिंह के पीछे-पीछे मायारानी और नागर आई थीं) रोशनी दिखाई दी। नागर ने भूतनाथ को लखलखा सुंघाने के लिए जो हाथ बढ़ाया था रोक किया, लखलखे की डिबिया जमीन पर रखकर तिलिस्मी खंजर म्यान से निकाल लिया, और अपने हाथ की मोमबत्ती बुझाकर मायारानी से बोली, "देखिये मैंने मोमबत्ती बुझाकर अँधेरा कर दिया, अब आप इधर-उधर मत हटिये, कहीं ऐसा न हो कि स्याह पत्थर पर पैर पड़ जाय। और आप भी तिलिस्मी खंजर अपने हाथ में ले लीजिए, ताज्जुब नहीं कि यह आने वाला हम लोगों का दुश्मन और वीरेन्द्रसिंह का कोई ऐयार हो।"