नागर ने उन सभी को अच्छी तरह गौर से देखा जो उस जगह बेहोश पड़े थे। भूतनाथ और देवीसिंह की कमर में कमन्द मौजूद थे, उन्हें खोल लिया और दोनों ने मिलकर उन्हीं कमन्दों से भूतनाथ, देवीसिंह, कमलिनी, लाड़िली और गोपालसिंह के हाथ-पैर बेरहमी के साथ खूब कसकर बाँध दिए और इसके बाद दोनों औरतें उसी तरफ चलीं जिधर से कमलिनी और लाड़िली को साथ लिए हए राजा गोपालसिंह आये थे।
मायारानी और नाग़र मोमबत्ती की रोशनी में स्याह पत्थरों को बचाती हुई उस दरवाजे के पास पहुँची जिसे खोलकर राजा गोपाल सिंह आए थे। यह वही दरवाजा था जिसमें अक्षरों वाले कील जड़े हुए थे और किसी अनजान आदमी से इसका खुलना बिल्कुल ही असम्भव था। मायारानी ने इसको खोलने का बहुत-कुछ उद्योग किया, मगर कुछ काम न चला। लाचार होकर उसने तरद और घबराहट की निगाह नागर पर डाली।
नागर-मेरा सोचना बहत ठीक निकला। यदि वे लोग मार डाले जाते तो निःसन्देह हम दोनों की मौत भी इसी सुरंग में हो जाती।
मायारानी-सच है, मगर अब क्या करना चाहिए? जहाँ तक मैं सोचती हूँ, इसके जवाब में तुम यही कहोगी कि इनमें से किसी को होश में लाकर जिस तरह बन पड़े, दरवाजा खोलने की तरकीब मालूम करनी चाहिए।
नागर-जी हाँ, क्योंकि सिवाय इसके कोई दूसरी बात ध्यान में नहीं आती।
मायारानी–खैर, यदि ऐसा हो भी जाय अर्थात् इन पाँचों में से किसी को होश में लाने और डराने-धमकाने से दरवाजा खुलने का भेद मालूम हो जाय तो फिर क्या किया जायगा? मैं समझती हूँ कि तुम यही कहोगी कि दरवाजे का भेद मालूम होने के बाद इन पांचों को कत्ल कर देना चाहिए।
नागर-नहीं, मेरी यह राय नहीं है, बल्कि मैं इन लोगों को उस समय तक कैद में रखना मुनासिब समझती हूँ जब तक कि रिक्तगन्थ और अजायबघर की ताली, जो तुमने भूतनाथ को दे दी है, अपने कब्जे में न आ जाय।
मायारानी-ओफ! मैं वास्तव में सैकड़ों आफतों में घिरी हुई हूँ। (कुछ सोच कर) खैर, कोई चिन्ता नहीं है। देखो तो, क्या होता है। मैं इन लोगों को जीता कदापि न छोड़गी। (रुककर) हाँ, जरा ठहरो, इन पाँचों में से किसी को होश में लाने के पहले सभी की तलाशी अच्छी तरह ले लेनी चाहिए। ताज्जुब नहीं कि रिक्तगन्थ और अजायबघर की ताली भी इन लोगों में से किसी के पास हो।
नागर-हाँ, मुमकिन है कि वे दोनों चीजें इन लोगों के पास हों। अच्छा, चलो, सबसे पहले यही काम किया जाय।
नागर को साथ लिए हुए मायारानी फिर उस जगह पहुंची जहाँ गोपालसिंह और भूतनाथ वगैरह बेहोश पड़े थे। हम ऊपर लिख आये हैं कि राजा गोपालसिंह और भूतनाथ के पास जो तिलिस्मी खंजर था, वह मायारानी ले चुकी है। एक खंजर उसने अपने पास रखा और दूसरा नागर को दे दिया। फिर उसने सबसे पहले भूतनाथ के