पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/४८

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मायारानी--(बात काट कर)—आ फंसना, जिसने मेरे साथ सख्त दगा की थी, कम खुशी की बात नहीं है।

नागर–बेशक, परन्तु मैं इन कम्बख्तों की जान ले लेने में विशेष विलम्ब करने के लिए नहीं कहती, हाँ इतनी देर तक रुक जाने के लिए अवश्य कहती हूँ जितनी देर में हम लोग इस बात को बखूबी सोच लें कि इन दुष्टों को मारने के बाद इस सुरंग का भेद मालूम न होने पर भी हम लोग यहाँ से निकल जा सकेंगे या नहीं?

मायारानी-क्यों, क्या हम लोगों को यहाँ से निकल जाने में किसी तरह की रुकावट हो सकती है? क्या हम लोगों ने भूतनाथ और देवीसिंह की बातें उस समय अच्छी तरह नहीं सुनीं जिस समय दोनों ऐयार सुरंग में उतर चुके थे? क्या उसी रीति से सुरंग का दरवाजा न खुल सकेगा जिस रीति से बन्द किया गया है?

नागर-इन बातों का ठीक-ठीक जवाब मैं नहीं दे सकती, बल्कि इन्हीं बातों पर विचार करने के लिए कुछ देर तक ठहरने को कहती हूँ।

मायारानी-(खंजर म्यान में रखकर और कुछ सोचकर) अच्छा-अच्छा, कुछ देर ठहर जाने में कोई हर्ज नहीं है, इन सभी की बेहोशी यकायक दूर नहीं हो सकती, चलो, पहले उस दरवाजे को खोलकर देखें कि वह खुलता है या नहीं। इतना कहकर नागर को साथ लिए हुए मायारानी सुरंग के दरवाजे की तरफ बढ़ी। जब उस लोहे के खम्भे के पास पहुँची जिस पर वह गरारीदार पहिया था जिसे घुमाकर भूतनाथ ने सुरंग का दरवाजा बन्द किया था तो रुकी और नागर की तरफ देखकर बोली, "इसी पहिए को घुमाकर भूतनाथ ने दरवाजा बन्द किया था।"

नागर-जी हाँ, अब इसी पहिये को उल्टा घुमाकर देखना चाहिए कि दरवाजा खुलता है या नहीं।

मायारानी -अच्छा, तुम्हीं इस पहिये को घुमाओ।

नागर ने उस पहिये को कई दफे उल्टा घुमाया और वह बखूबी घूम गया, इसके बाद दोनों औरतें यह देखने के लिए सीढ़ी पर चढ़ीं कि दरवाजा खुला या नहीं, मगर दरवाजा ज्यों-का-त्यों बन्द था। मायारानी को बहुत ताज्जुब हुआ और वह घबरायी सी होकर नीचे उतर आई और नागर की तरफ देखकर बोली, "तुम्हारा सोचना ठीक निकला।"

नागर-इसी से मैंने आपको रोका था, यदि आप जोश में आकर इन सभी को मार डालतीं तो फिर हम लोग भी इसी सुरंग में मर मिटते।

मायारानी–बेशक-बेशक। (कुछ सोचकर) अच्छा, एक बार उधर चलकर देखना चाहिए जिधर से यह (गोपालसिंह) आया है, शायद उधर का दरवाजा खुला हो। चलिए देखिए, शायद कुछ काम निकले। मगर ताज्जुब नहीं कि लौटने तक इन लोगों की बेहोशी जाती रहे।

मायारानी–हाँ, ऐसा हो सकता है। अच्छा, तो इन लोगों के हाथ-पैर कसकर बाँध देने चाहिए जिसमें यदि बेहोशी जाती भी रहे तो कुछ न कर सकें।