इससे बढ़कर दुनिया में और क्या अनूठी चीज होगी!
मायारानी-इस कम्बख्त ने मुझसे कहा था कि कमलिनी ने गोपालसिंह को भी एक तिलिस्मी खंजर दिया है। (गोपालसिंह को अच्छी तरह देखकर) हाँ, हाँ, इसकी कमर में भी वही खंजर है! ताज्जुब नहीं कि कमलिनी और लाडिली की कमर में भी इसका जोड़ा हो। (कमलिनी, लाड़िली और देवसिंह की तरफ ध्यान देकर) नहीं नहीं, और किसी के पास नहीं है। खैर दो खंजर तो मिले, एक मैं रक्खूगी और एक तुझे दूँगी। इसमें जो-जो गुण हैं भूतनाथ की जुबानी सुन ही चुकी हूँ, अच्छा भूतनाथ का खंजर तू ले-ले और इसका मैं लेती हूँ।
खुशी-खुशी मायारानी ने पहले गोपालसिंह की उँगली से वह अंगूठी उतारी जो तिलिस्मी खंजर के जोड़ की थी और इसके बाद कमर से खंजर निकालकर अपने कब्जे में किया। नागर ने भी पहले भूतनाथ के हाथ से अंगूठी उतार कर पहन ली और तब खंजर पर कब्जा किया। मायारानी ने हँसकर नागर की तरफ देखा और कहा, "अब इसी खंजर से इन पाँचों दुष्टों को इस दुनिया से उठाकर हमेशा के लिए निश्चिन्त होती हूँ!"
मायारानी ने गोपालसिंह को मारने के लिए जैसे ही खंजर उठाया, वैसे ही नागर ने फुर्ती से उसकी कलाई पकड़ ली और कहा--
नागर-ठहरो-ठहरो! जल्दी न करो, आखिर ये लोग तुम्हारे कब्जे में तो आ ही चुके हैं और अब किसी तरह छूटकर जा नहीं सकते। फिर बिना अच्छी तरह विचार किए जल्दी करने की क्या आवश्यकता है। क्या जाने, सोचने-विचारने से कुछ विशेष लाभ की सूरत ध्यान में आवे।
मायारानी-(रुक कर) तुम्हारा कहना ठीक है, परन्तु यदि दुश्मन कब्जे में आ जाय तो उसके मारने में विलम्ब करना कदापि उचित नहीं है। इसी (गोपालसिंह) को जब मैंने कैद किया था तो इसके मारने के विषय में सोच-विचार करते-करते वर्षों बिताए और अन्त में इस विलम्ब का क्या नतीजा निकला सो देख ही रही हो उस विलम्ब ही के कारण आज मैं फकीरिन होकर भी (गला भर आने के कारण रुक कर) आज ईश्वर ने मुझ पर कृपा की है और दुश्मनों को मेरे कब्जे में कर दिया है। ताज्जुब नहीं कि इनके मारने में देर तथा सोच-विचार करने का वही नतीजा हो जो पहले हो चुका है।
नागर-ठीक है और मैं भी इसी में प्रसन्न हूँ कि जहाँ तक हो सके ये लोग शीघ्र मार डाले जायँ। अहा, कमलिनी के सहित गोपालसिंह का फँस जाना क्या कम खुशी की बात है, और फिर इन दोनों के साथ ही वेईमान भूतनाथ का भी...