पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/४५

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राजा गोपालसिंह तथा कमलिनी और लाडिली को हम देवमन्दिर में छोड़ आये हैं। वे तीनों भूतनाथ के आने की उम्मीद में देर तक देवमन्दिर में रहे, मगर जब भूतनाथ न आया तो लाचार होकर कमलिनी ने गोपालसिंह से कहा--

कमलिनी-मालूम होता है कि भूतनाथ किसी काम में फंस गया। खैर, अब हम लोगों को यहाँ व्यर्थ रुकना उचित नहीं क्योंकि अभी बहुत-कुछ काम करना बाकी है।

गोपालसिंह-ठीक है, मगर जहाँ तक मैं समझता हूँ, तुम्हारे करने योग्य इस समय कोई काम नहीं है क्योंकि दोनों कुमार तिलिस्म के अन्दर जा ही चुके हैं, और बिना तिलिस्म तोड़े अब उनका बाहर निकलना कठिन है, हाँ, कम्बख्त मायारानी के विषय में बहुत कुछ करना है सो उसके लिए मैं अकेला काफी है, इसके अतिरिक्त और जो कुछ काम है उसे ऐयार लोग बखूबी कर सकते हैं।

कमलिनी-आपकी बातों से पाया जाता है तो कि मेरे यहाँ रहने की अब कोई आवश्यकता नहीं। गोपालसिंह-बेशक मेरे कहने का यही मतलब है।

कमलिनी-अच्छा तो मैं लाड़िली को साथ लेकर अपने घर जाती हूँ, उधर ही से रोहतासगढ़ पर ध्यान रक्लूंगी।

गोपालसिंह- हाँ तुम्हें वहाँ अवश्य जाना चाहिए क्योंकि किशोरी और कामिनी भी उसी मकान में पहुँचा दी गई हैं, उनसे जब तक न मिलोगी तब तक वे बेचैन रहेंगी, इसके अतिरिक्त कई कैदियों को भी तुमने वहाँ भिजवाया है, उनकी भी खबर लेनी चाहिए।

कमलिनी अच्छा, थोड़ी-देर तक भूतनाथ की राह और देख लीजिए।

आधी रात बीत जाने के बाद तीनों आदमी वहां से रवाना हुए। वे पहले उस गोल खम्भे के पास आये जो कमरे के बीचोंबीच में था और जिस पर तरह-तरह की मूरतें बनी हुई थीं। राजा गोपालसिह न एक मूरत पर हाथ रख कर जोर से दबाया, साथ ही एक छोटी-सी खिड़की अन्दर जाने के लिए दिखाई दी। दोनों सालियों को साथ लिए हुए गोपालसिंह उस खिड़की के अन्दर घुस गये; जहाँ नीचे उतरने के लिए सीढियाँ बनी हई थीं। यद्यपि उसके अन्दर एक दम अँधेरा था. मगर तीनों आदमी अन्दाज से उतरते चले गए, जब नीचे एक कोठरी में पहुँचे तो गोपालसिंह ने मोमबत्ती जलाई। मोमबत्ती जलाने का सामान उसी कोठरी में एक आले पर रक्खा हआ था जिसे अँधेरे में ही गोपालसिंह ने खोज लिया था। वह कोठरी लगभग दस हाथ के चौड़ी और इतनी लम्बी होगी। चारों तरफ दीवार में चार दरवाजे बने हुए थे और छत में जंजीरें लटक रही थीं। गोपालसिंह ने एक जजीर हाथ से पकड़कर खींची जिससे गोल


1. वही तिलिस्मी मकान जो तालाब के अन्दर है।