पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/३६

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और दुःखी मायारानी केवल पाँच लौंडियों के साथ सिर झुकाये अपने किये हुए बुरे कर्मों की याद कर करके पछता रही है। रात की अवाई के कारण जैसे-जैसे अँधेरा होता जाता है, तैसे-तैसे उसकी घबराहट भी बढ़ती जाती है। इस समय मायारानी और उसकी लौंडियाँ मर्दाने भेष में हैं। लौंडियों के पास नीमचा तथा तीर-कमान मौजूद हैं। मगर मायारानी केवल तिलिस्मी तमंचा कमर में छिपाये हुए है। वह घबड़ा-घबड़ाकर बारबार पूरब की तरफ देख रही है, जिससे मालूम होता है कि इस समय उधर से कोई उसके पास आने वाला है। थोड़ी ही देर बाद अच्छी तरह अँधेरा हो गया और इसी बीच में पूरब की तरफ से किसी के आने की आहट मालूम हुई। यह लीला थी जो मर्दाने भेष में पीतल की जालदार लालटेन लिए हुए कहीं दूर से चली आ रही थी। जब वह पास आयी, मायारानी ने घबराहट के साथ पूछा, "कहो, क्या हाल है?"

लाली–हाल बहुत ही खराब है, अब तुम्हें जमानिया की गद्दी कदापि नहीं मिल सकती।

मायारानी—यह तो मैं पहले ही से समझे बैठी हूँ। तू दीवान साहब के पास गई थी?

लाली–हाँ, गई थी, उस समय उन सिपाहियों में से कई सिपाही वहां मौजूद जो आपके तिलिस्मी बाग में रहते हैं और जिन्होंने दोनों नकाबपोशों का साथ दिया था। उस समय वे सिपाही दीवान साहब से दोनों नकाबपोशों का हाल बयान कर रहे थे, मगर मुझे देखते ही चुप हो गये।

मायारानी-तब क्या हुआ?

लीला-दीवान साहब ने मुझे एक तरफ बैठने का इशारा किया और पूछा कि 'तू यहाँ क्यों आई है?' इसके जवाब मैं मैंने कहा कि 'मायारानी हम लोगों को छोड़कर न मालूम कहाँ चली गई। जब चारों तरफ ढूंढ़ने पर भी पता न लगा तो इत्तिला के लिए आपके पास आई हूँ।' यह सुनकर दीवान साहब ने कहा कि 'अच्छा ठहर, मैं इन सिपाहियों से बातें कर लूँ, तब तुझसे करूँ।'

मायारानी-अच्छा, तब तूने उन सिपाहियों की बातें सुनीं?

लीला-जी नहीं, सिपाहियों ने मेरे सामने बात करने से इनकार किया और कहा कि "हम लोगों को लीला पर विश्वास नहीं है!" आखिर दीवान साहब ने मुझे बाहर जाने का हुक्म दिया। उस समय मुझे अंदाज से मालूम हुआ कि मामला बेढब हो गया और ताज्जुब नहीं कि मैं गिरफ्तार कर ली जाऊँ, इसलिए पहरे वालों से बात बनाकर मैंने अपना पीछा छुड़ाया और भाग कर मैदान का रास्ता लिया।

मायारानी--संक्षेप में कह कि उन दोनों नकाबपोशों का कुछ भेद मालूम हुआ कि नहीं?

लीला-दोनों नकाबपोशों का असल भेद कुछ भी मालूम न हुआ, हाँ उस आदमी का पता लग गया, जिसने बाग से निकल भागने का विचार करते समय गुप्त रीति से कहा था कि 'बेशक-बेशक, तुम मरते-मरते भी हजारों घर चौपट करोगी!'

मायारानी–हाँ, कैसे पता लगा? वह कौन था?