पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/३३

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खयाल से मैंने आपसे कहा था कि कुँवर आनन्दसिंह अपने को छुड़ा नहीं सकते, बल्कि तिलिस्म के अन्दर जा सकते हैं।

इन्द्रजीतसिंह-अफसोस! खैर, मर्जी परमेश्वर की! इस समय मेरा दिमाग परेशान हो रहा है। धनपत को मैं इस अवस्था में क्यों देख रहा हूँ? यकायक आपका इस बाग में आना कैसे हुआ? आप मुझसे मिले बिना सीधे इस मकान में क्यों आये? आनन्द को इस मकान में आपने ठहरने क्यों दिया अथवा उसे बचाने का उद्योग क्यों न किया? इत्यादि बहुत-सी बातें जानने के लिए मैं इस समय परेशान हो रहा है, मगर इसके पहले मैं इस कुएँ की अवस्था जानने का उद्योग करूँगा। (कमलिनी की तरफ देखकर) जरा तिलिस्मी खंजर मुझे दो, उसके जरिये से इस कुएँ में उजाला करके मैं देखूँगा कि इसके अन्दर क्या है?

कमलिनी-(तिलिस्मी खंजर और अंगूठी कुमार के सामने रखकर) लीजिए, शायद इससे कुछ काम चले!

कुँवर इन्द्रजीतसिंह ने अँगूठी पहनकर खंजर हाथ में लिया और धीरे-धीरे उस गड्ढे के किनारे गये जो ठीक कुएँ की तरह का हो रहा था। खंजर वाला हाथ कुमार ने कुएं के अन्दर डाला और उसका कब्जा दबाकर उजाला करने के बाद झाँककर देखा कि उसके अन्दर क्या है। न मालूम कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने कुएँ के अन्दर क्या देखा कि वे यकायक बिना किसी से कुछ कहे तिलिस्मी खंजर हाथ में लिए उस कुएँ के अन्दर कूद पड़े। यह देखते ही कमलिनी और लाड़िली परेशान हो गयीं और राजा गोपालसिंह को भी बहुत ताज्जुब हुआ। इन्द्रजीतसिंह की तरह राजा गोपालसिंह ने भी अपना तिलिस्मी खंजर हाथ में लेकर कुएँ अन्दर किया और उसका कब्जा दबा रोशनी करने के बाद झाँककर देखा कि क्या बात है मगर कुछ दिखाई न पड़ा।

कमलिनी-कुछ मालूम हुआ कि इस गड्ढे में क्या है?

गोपालसिंह--कुछ भी मालूम नहीं होता, न जाने क्या देखकर कुमार इसमें कूद गये।

कमलिनी-खैर, आप यहाँ से हटिये और सोचिये कि अब क्या करना होगा?

गोपालसिंह-यद्यिप मैं जानता हूँ कि यह तिलिस्म कुमार के ही हाथ से टूटेगा, परन्तु इस रीति से दोनों कुमारों का तिलिस्म के अन्दर जाना ठीक न हुआ। देखना चाहिए, ईश्वर क्या करता है? चलो, अब यहाँ रहना उचित नहीं है और न कुमार से मुलाकात होने की ही कोई आशा है।

कमलिनी-(अफसोस के साथ) चलिये।

गोपालसिंह-(बाहर की तरफ चलते हुए) अफसोस! कुमार से कई बातें कहने की आवश्यकता थी, मगर लाचार!

कमलिनी-(धनपत की तरफ इशारा करके) इसे आप कहाँ-कहाँ लिए फिरेंगे और यहाँ क्यों लाए थे?

गोपालसिंह-इसे मैं कल गिरफ्तार करके इसी मकान के अन्दर छोड़ गया था।