दफा जाकर बाग के दूसरे दर्जे का दरवाजा तिलिस्मी रीति से बन्द किया था। हम ऊपर लिख आये हैं कि वहाँ दीवार में बिना दरवाजे की पाँच आलमारियाँ थीं और एक आलमारी में ताँबे के बहुत से डिब्बे रक्खे थे। इस समय मायारानी ने उन्हीं डिब्बों को खोल-खोल कर देखना शुरू किया। ये डिब्बे छोटे और बड़े हर प्रकार के थे। कई डिब्बे खोल-खोल कर देखने के बाद मायारानी ने एक डिब्बा खोला जिसका पेटा एक हाथ से कम न होगा। उस डिब्बे में एक हाथीदाँत का तमंचा बारह अंगुल का और छोटी-छोटी बहुत-सी गोलियाँ रक्खी हुई थीं। उन गोलियों का रंग लाल था, और उनके अलावा एक ताम्रपत्र भी उस डिब्बे के अन्दर था। मायारानी इस डिब्बे को लेकर वहाँ से रवाना हुई और तहखाने का दरवाजा बन्द करती हुई अपने स्थान पर उस जगह पहुंची जहाँ उसकी लौंडियाँ उसकी राह देख रही थीं। उसने सब लौंडियों के सामने ही उस डिब्बे को खोला और ताम्रपत्र हाथ में लेकर पढ़ने लगी, जब पूरी तरह पढ़ चुकी तो लीला की तरफ देखकर बोली, "तू देखती है कि मैं किस बला में फंस गई हूँ?"
लीला-जी हाँ, मैं बखूबी देख रही हूँ। दोनों नकाबपोशों की तरफ जब ध्यान देती हूँ तो कलेजा काँप जाता है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि अब कोई भारी उपद्रव उठने वाला है क्योंकि नकाबपोशों की बदौलत इस बाग के सिपाही भी बागी हो गए हैं।
मायारानी-बेशक ऐसा ही है और ताज्जब नहीं कि वे सिपाही लोग जो इस समय मेरे पंजे से निकल गए हैं मेरे बाकी के फौजी सिपाहियों को भी भड़कावें।
लीला-इसमें कुछ भी सन्देह नहीं, बल्कि इन सिपाहियों की बदौलत आपकी रिआआ भी बागी हो जायगी और तब जान बचाना मुश्किल हो जायगा। अफसोस, आपने व्यर्थ ही अपने दोनों भेद मुझसे छिपा रक्खे, नहीं तो मैं इस विषय में कुछ राय देती!
मायारानी-(ताज्जुब से) दोनों भेद कौन से? लीला-एक तो यही धनपत वाला। मायारानी–हाँ, ठीक है, और दूसरा कौन?
लीला-(मायारानी के कान की तरफ झुक कर धीरे से) राजा गोपालसिंह वाला, जिन्हें भूतनाथ की मदद से आपने मार डाला!
लीला की बात सुनकर मायारानी चौंक पड़ी, वह अपनी जगह से उठ खड़ी हुई और लीला का हाथ पकड़ के किनारे ले जाकर धीरे-से बोली, "देख लीला, तू केवल मेरी लौंडियों की सरदार ही नहीं बल्कि बचपन की साथी और मेरी सखी भी है। सच बता, गोपालसिंह वाला भेद तुझे कैसे मालूम हुआ?"
लीला-आप जानती ही हैं कि मुझे कुछ ऐयारी का भी शौक है।
मायारानी-- हाँ, मैं खूब जानती हूँ कि तू ऐयारी भी कर सकती है लेकिन इस किस्म का काम मैंने तुझसे कभी लिया नहीं।
लीला—यह मेरी बदकिस्मती थी, नहीं तो मैं अब तक ऐयारा की पदबी पा चुकी होती।
मायारानी-ठीक है, खैर, तो इससे मालूम हुआ कि तूने ऐयारी से गोपालसिंह