चाहती हूँ!" यह आवाज कमलिनी की थी जिसे सुनकर राजा वीरेन्द्र सिंह ने जिन्न की तरफ देखा और जिन्न ने जोश के साथ कहा, "हाँ-हाँ, आप बेशक इस कलमदान को पर्दे के अन्दर भिजवा दें क्योंकि लक्ष्मीदेवी और कमलिनी को भी इस कलमदान का देखना आवश्यक है।" (तेजसिंह से) "आप स्वयं इसे लेकर चिक के अन्दर जाइये।"
तेजसिंह कलमदान को लेकर उठ खड़े हुए और चिक के अन्दर जाकर कलमदान कमलिनी के हाथ में रख दिया। वहाँ किसी तरह की रोशनी नहीं थी और पूरा अंधकार था इसलिए उन सभी को कलमदान अच्छी तरह देखने के लिए दूसरे कमरे में जाना पड़ा जहाँ दीवारगीरों की रोशनी से दिन की तरह उजाला हो रहा था।
सिवाय लक्ष्मीदेवी के और किसी औरत ने कलमदान को नहीं पहचाना और न किसी पर उसका असर ही पड़ा, मगर लक्ष्मीदेवी ने जिस समय उसे उजाले में देखा, तो उसकी अजब हालत हो गई। वह सिर पकड़कर जमीन पर बैठने के साथ ही बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ी।
लक्ष्मीदेवी के बेहोश होने से एक हलचल-सी मच गई और कमलिनी तथा कमला इत्यादि उसे होश में लाने का उद्योग करने लगीं। तेजसिंह कलमदान उठाकर और यह कहकर कि "लक्ष्मीदेवी की तबीयत ठीक हो के साथ ही बाहर खबर कर देना" वीरेन्द्रसिंह के पास चले आये और कलमदान सामने रखकर लक्ष्मीदेवी का हाल कहा।
इस मामले से सभी का ताज्जुब बढ़ गया और वीरेन्द्र सिंह ने तेजसिंह से कहा―
वीरेन्द्रसिंह―इन भेदों को खोल कर आज अवश्य फैसला कर ही देना चाहिए।
तेजसिंह―मैं भी यही चाहता हूँ। (जिन्न की तरफ देख के) मगर यह बात बिना आपकी मदद के किसी तरह नहीं हो सकती!
जिन्न―जब तक राजा वीरेन्द्रसिंह आज्ञा नहीं देंगे मैं यहाँ से न जाऊँगा क्योंकि मैं भी इस मामले को आज खतम कर देना आवश्यक समझता हूँ मगर तब तक सब्र कीजिए जब तक लक्ष्मीदेवी की तबीयत ठिकाने न हो जाय और वे सब पर्दे के पास आकर बैठ न जायँ। हाँ, बलभद्रसिंह को कहिये कि वह उठकर अपने ठिकाने जाय और भाग जाने का ध्यान भूल कर चुपचाप बैठे।
बलभद्रसिंह की ताकत बिल्कुल निकल गई थी और वह जहाँ का तहाँ सुस्त बैठा रह गया था। तेजसिंह ने उसे उठाकर अपनी बगल में बैठा लिया और थोड़ी देर तक सन्नाटा रहा।
आधी घड़ी के बाद खबर आई कि लक्ष्मीदेवी की तबीयत ठीक हो गई और वे सब पर्दे के पास आकर बैठ गई हैं।