पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२४३

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तेजसिंह को दिया उसमें क्या लिखा हुआ था और राजा वीरेन्द्रसिंह उसे पढ़कर और जिन्न की तरफ देखकर क्यों हँस पड़े? और इसी तरह जिन्न भैरोंसिंह को और भैरोसिंह जिन्न को देखकर क्यों हँसे? असल भेद न किसी को मालूम हुआ न कोई पूछ ही सका।

जब जिन्न ने मायारानी और बलभद्रसिंह की देखा-देखी के बारे में आवाजं कसी, उस समय मायारानी ने बलभद्रसिंह की तरफ से आँखें फेर लीं, मगर बलभद्रसिंह केवल आँख वचाकर चुप न रह गया बल्कि उसने क्रोध में आकर जिन्न से कहा―

बलभद्रसिंह―एक तो तुम बिना बुलाए यहाँ पर चले आए जहाँ आपस की गुप्त बातों का मामला पेश है, दूसरे तुमसे जो कुछ पूछा गया, उसका जवाब तुमने बेअदबी और ढिठाई के साथ दिया, तीसरे अब तुम बात-बात पर टोका-टाकी करने और आवाजें भी कसने लगे! आखिर कोई कहाँ तक ये हरकतें बरदाश्त करेगा? तुम हम लोगों की बातों में बोलने वाले कौन?

जिन्न―(क्रोध और जोश में आकर) हमें भूतनाथ ने अपना मुख्तार बनाया है, इसलिए हम इस मामले में बोलने का अधिकार रखते हैं, हाँ, यदि राजा साहब हमें चुप रहने की आज्ञा दें तो हम अपनी जवान बन्द कर सकते हैं। (कुछ रुककर) मगर मैं अफसोस के साथ कहता हूँ कि क्रोध और खुदगर्जी ने तुम्हारी बुद्धि के आईने को गँदला कर दिया है और निर्लज्जता की सहायता से तुम बोलने में तेज हो गये हो। इतना भी नही सोचते कि इतने बड़े रोहतासगढ़ किले के अन्दर बल्कि महल के बीच में जो बेखौफ घुस आया है वह किसी तरह की ताकत भी रखता होगा या नहीं! (राजा वीरेन्द्रसिंह और ऐयारों की तरफ इशारा करके) जो ऐसे-ऐसे वहादुरों और बुद्धिमानों के सामने बिना बुलाए आने पर भी ढिठाई के साथ वाद-विवाद कर रहा है, वह किसी तरह की कुदरत भी रखता होगा या नहीं! मैं खूब जानता हूँ कि नेक, ईमानदार, निर्लोभ और लापरवाह आदमी को राजा वीरेन्द्रसिंह ऐसे बहादुर और तेजसिंह ऐसे चालाक आदमी भी कुछ नहीं कह सकते, तुम्हारे ऐसों की तो हकीकत ही क्या जिसने बेईमानी, लालच, दगाबाजी और बेशर्मी के साथ ही-साथ पापों की भारी गठरी अपने सिर पर उठा रखी है और उसके बोझ से घुटने तक जमीन के अन्दर गड़ा हुआ है। मैं इस बात को भी खूब समझता हूँ कि मेरी इस समय की बातचीत लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाड़िली को जो इस पर्दे के अन्दर बैठी हुई सब-कुछ देख सुन रही हैं बहुत वुरी मालूम होती होगी, मगर उन्हें धीरज के साथ देखना चाहिए कि हम क्या करते हैं। हाँ मुझे अभी बहुत-कुछ कहना है और मैं चुप नहीं रह सकता क्योंकि तुमने लज्जा से सिर झुका लेने के बदले में बेशर्मी अख्तियार कर ली है और जिस तरह अबकी दफे टोका है उसी तरह आगे भी बात-बात मुझे टोकने का इरादा कर लिया है, मगर खूब समझ रखो कि राजा वीरेन्द्रसिंह और उनके ऐयारों की बातें मैं इसलिए सह लूँगा कि ये लोग किसी के साथ सिवाय भलाई के बुराई करने वाले नहीं हैं जब तक कोई कम्बख्त इन लोगों को व्यर्थ न सतावे, और ये नेक तथा बद को पहचानने की भी बुद्धि रखते हैं, मगर तुम्हारे ऐसे बेईमान और पापी की बातें मैं सह नहीं सकता। भूतनाथ पर एक भारी इल्जाम लगाया गया है और भूतनाथ का मैं मुख्तार हूँ, इससे मेरी इज्जत में कमी नहीं आ सकती। तुम लक्ष्मीदेवी,