पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२४२

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आप लोगों को यही चाहिए कि हमारा खयाल छोड़कर अपना काम करें और हमारा होना न होना एक बराबर समझें।

जिन्न की बातों से सभी को बड़ा ही आश्चर्य और रंज हुआ, बल्कि हमारे कई ऐयारों को क्रोध भी चढ़ आया, मगर राजा वीरेन्द्रसिंह का इशारा पाकर सभी को चुप और शान्त होना ही पड़ा। वीरेन्द्रसिंह ने तेजसिंह की तरफ देखकर भूतनाथ का मुकदमा शुरू करने के लिए कहा और तेजसिंह ने ऐसा ही किया।

तेजसिंह ने भूमिका के तौर पर थोड़ा-सा पिछला हाल कह कर वह गठरी खोली जिसमें पीतल की एक सन्दूकड़ी और कागज का वह मुट्ठा भी था जिसमें की कई चिट्ठियाँ कमलिनी वगैरह के सामने पढ़ी जा चुकी थीं। तेजसिंह उन चिट्ठियों को पढ़ गये, जिनका हाल हमारे पाठकों को मालूम हो चुका है और इसके बाद अगली चिट्ठी पढ़ने का इरादा किया, मगर जिन्न ने उसी समय टोक दिया और कहा, “यदि महाराज साहब उचित समझें, तो दारोगा और मुन्दर को भी जिसने अपने को मायारानी के नाम से मशहूर कर रखा है और जो इस समय सरकार के कब्जे में है इसी जगह बुलवा लें और चिट्ठियों को उनके सामने पुनः पढ़ने की आज्ञा दें। यद्यपि यहाँ पर शेरअलीखाँ के आने की भी आवश्यकता है परन्तु मौके-मौके पर कई बातें ऐसी प्रकट होंगी, जिनका हाल शेरअलीखाँ को मालूम होने देना हम उचित नहीं समझते।"

यद्यपि जिन्न ने बेमौके टोक दिया था और राजा वीरेन्द्रसिंह तथा हमारे ऐयारों को इस बात का रंज होना चाहिए था, मगर ऐसा नहीं हुआ, बल्कि सभी ने जिन्न की बात पसन्द की और महाराज ने मायारानी को हाजिर करने का हुक्म दिया। तारासिंह गए और थोड़ी ही देर में मायारानी और दारोगा को इस तरह लिए हुए आ पहुँचे, जिस तरह अपनी जान से हाथ धोए और जिद्दी कैदियों को घसीटते हुए लाना पड़ता है। जिस समय मुन्दर वहाँ आई, उसने घबराहट के साथ चारों तरफ देखा। सबसे ज्यादा देर तक उसकी निगाह जिस पर अड़ी रही, वह बलभद्रसिंह था, और बलभद्रसिंह ने भी मायारानी को बड़े गौर से देर तक देखा। जिन्न ने इस समय पुनः टोका और राजा वीरेन्द्रसिंह से कहा, "आशा है कि हमारे होशियार और नीति-कुशल महाराज मुन्दर और बलभद्रसिंह की आँखों को बड़े ध्यान और गूढ़ विचार से देख रहे होंगे!"

जिन्न की इस बात ने होशियारों और बुद्धिमानों के दिल में एक नया ही रंग पैदा कर दिया और तेजसिंह तथा वीरेन्द्रसिंह ने मुस्कुराते हुए जिन्न की तरफ देखा। इसी समय भैरोंसिंह भी आ पहुँचे जिन्हें तेजसिंह कुछ समझा-बुझाकर आज दो दिन हुए बाग के उस हिस्से में छोड़ कर आये थे जिसमें मायारानी गिरफ्तार की गई थी। भैरोंसिंह के हाथ में एक छोटा-सा पुर्जा था जिसे उन्होंने तेजसिंह के हाथ में रख दिया और तब मुस्कुराते हुए जिन्न की तरफ देखा। भैरोंसिंह को देख जिन्न के दाँत भी हँसी से दिखाई दे गए, मगर उसने अपने को रोका और भैरोंसिंह की तरफ से मुँह फेर लिया। तेजसिंह ने इस पुर्जे को पढ़ा और हँसकर राजा वीरेन्द्रसिंह के हाथ में दे दिया। राजा वीरेन्द्रसिंह भी पढ़कर हँस पड़े और जिन्न तथा भैरोंसिंह की तरफ देखने लगे।

इस समय सभी की इच्छा यह जानने की हो रही थी कि भैरोंसिंह ने जो पुर्जा