पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२३६

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फिरा कर घर-बैठे हम लोगों के सामने ले आती है। हाँ, यह (शेरअलीखाँ) एक नये बहादुर हैं जो हम लोगों के साथ दुश्मनी करने के लिए तैयार हुए हैं।

शेरअलीखाँ―(हाथ जोड़कर) नहीं-नहीं, मैं खुदा की कसम खाकर कहता हूँ कि मैं आप लोगों के साथ दुश्मनी का वर्ताव नहीं रक्खा चाहता और न मुझमें इतनी सामर्थ्य है। मुझे तो इस बदकार ने धोखा दिया। मुझे इसका असल हाल मालूम न था। मैं सुन चुका हूँ कि आप लोग बड़े बहादुर और दिल खोल के खैरात देनेवाले हैं इसलिए भीख के ढंग पर अपने उन कसूरों की माफी माँगता हूँ जो इस वक्त तक कर चुका हूँ।

तेजसिंह―अगर तुम्हारा दिल साफ है और आगे कसूर करने का इरादा नहीं है तो हमने माफ किया। अच्छा आओ और इन दोनों बदकारों को लेकर हमारे साथ चलो। हाँ, यह तो बताओ कि ये पाँचों आदमी तुम्हारे हैं या इस दरोगा के हैं?

शेरअलीखाँ―जी हाँ, ये पाँचों आदमी मेरे ही हैं।

तेजसिंह―और भी तुम्हारा कोई आदमी इस वाग में आया या आने वाला है?

शेरअलीखाँ―जी नहीं, मगर थोड़ी-सी फौज इस पहाड़ी के नीचे नदी-किनार मौजूद है जिसका...

तेजसिंह―(बात काट कर) उसका हाल हमें मालूम है, खैर देखा जायगा, तुम हमारे साथ आओ।

तेजसिंह की आज्ञानुसार सब के सब कमरे के बाहर निकले। मायारानी और दरोगा के लिए इस वक्त मौत का सामान था, मगर लाचार कोई वस नहीं चल सकता था और न वे दोनों यहाँ से भाग ही सकते थे। तेजसिंह ने भैरोंसिंह को कुछ समझाकर उसी बाग में छोड़ दिया। और बाकी सभी को साथ लिए हुए अपने स्थान का रास्ता लिया। रास्ते में शेरअलीखाँ से यों बातचीत होने लगी―

तेजसिंह―आज की रात केवल हम लोगों के लिए नहीं बल्कि तुम्हारे लिए भी अनूठी ही रही।

शेरअलीखाँ―बेशक ऐसा ही है, जिस राह से मैं इस बाग में आया हूँ और यहाँ आकर जो कुछ देखा जन्म भर याद रहेगा। मैं निश्चिन्त होने पर सब हाल आपसे कहूँगा तो आप भी सुनकर आश्चर्य करेंगे।

तेजसिंह―हमें सब हाल मालूम है। रास्ते के बारे में हम लोगों के लिए कोई नई बात नहीं है क्योंकि जिस तहखाने की राह तुम लोग आये हो, उसी राह से हम लोग कई दफे आ चुके हैं। रही जिन्न वाली बात, सो वह भी हम लोगों से छिपी नहीं है।

शेरअलीखाँ―(ताज्जुब से) क्या आप लोग बहुत देर से यहाँ आये हुए थे?

तेजसिंह―देरी से! बल्कि हमारे सामने तुम इस बाग में आये हो। हाँ, तुम्हारे पाँचों नौकर पहले आ चुके थे, बल्कि यों कहना चाहिए कि उन्हीं के आने की खबर पाकर हम लोग आए थे।

शेरअलीखाँ―आप लोग हम लोगों को कहाँ से देख रहे थे?

तेजसिंह―सो नहीं कह सकते, मगर कोई मामला ऐसा नहीं हुआ जिसे हम लोगों ने न देखा हो या जिसे हम लोग न जानते हों। (मायारानी और दारोगा की