पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२३१

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दारोगा-(गुस्से से) बस, जुबान सम्हालकर बातें करो।

जिन्न-अबे जा दूर हो सामने से। चालीस वर्ष तक तिलिस्म का इन्तजाम करता रहा! तेरे ऐसे बेईमान और मालिक की जान लेने वाले भी अगर तिलिस्मी कारखाने को जानने की डींग हाँके तो बस हो चुका। बस, अब बेहतरी इसी में है कि तुम यहाँ से चले जाओ और जो किया चाहते हो उसका ध्यान छोड़ो नहीं तो अच्छा न होगा।

इतना कहकर उसने शेरअलीखाँ, मायारानी और उन पांचों आदमियों की तरफ भी देखा जो इस मकान में पहले आये थे।

दारोगा ने क्षण-भर तो कुछ सोचा और फिर शेरअलीखाँ की तरफ देख के बोला, "क्या एक अदना ऐयार मक्कारी करके हम लोगों का बना-बनाया खेल चौपट कर देगा? देख क्या रहे हो! मारो इस कम्बख्त को, बचकर जाने न पावे।"

शेरअलीखाँ पहले तो कुछ सहमा हुआ था, मगर दारोगा की बातचीत ने उसे निडर कर दिया और जिन्न का खयाल छोड़ उसने भी कुछ-कुछ यकीन कर लिया कि यह कोई ऐयार है। आखिर उसने म्यान से तलवार निकाल ली और उन पांचों आदमियों की तरफ जो जमीन खोदने के लिए आये थे कुछ इशारा करके जिन्न के ऊपर हमला किया। जिन्न ने इसकी कुछ भी परवाह न की और बड़े गम्भीर भाव से चुपचाप खड़ा रहा तथा शेरअलीखाँ के हमले को बरदाश्त कर गया, मगर शेरअलीखाँ के हमले का नतीजा कुछ भी न निकला क्योंकि उसकी तलवार आवाज देती हुई जमीन पर गिर पड़ी। इसके साथ ही उन पांचों आदमियों ने भी जिन्न पर हमला किया, मगर जिन्न ने इसकी भी कुछ परवाह न की, बल्कि शेरअलीखाँ के गले में हाथ डाल तथा पैर की आड़ लगाकर ऐसा झटका दिया कि वह किसी तरह सम्हल न सका और जमीन पर गिर पड़ा। जिन्न उसकी छाती पर सवार हो गया और जोर से बोला, "खबरदार, मुझ पर कोई हमला न करे। कोई मेरी तरफ बढ़ा और मैंने शेरअलीखाँ का सिर काटकर अलग किया।"

मालूम होता है कि वे पांचों आदमी शेरअलीखाँ के ही नौकर थे क्योंकि उसी के उशारे से जिन्न पर हमला करने के लिए तैयार हो गये थे और जब उसी को जिन्न के नीचे मजबूर देखा तो यह सोचकर कि कदाचित् हम लोगों के हमला करने से नाराज होकर जिन्न उसका सिर काट ही न ले हमला करने से रुक गये और पीछे हटकर ताज्जुब की निगाहों से उस विचित्र व्यक्ति को देखने लगे जिसने अपना नाम जिन्न रखा था, साथ ही इसके डर और आश्चर्य ने मायारानी और दारोगा के पैर भी वही चिपका दिये।

जब हमला करने वाले अलग हो गये तो जिन्न ने नर्मी के साथ शेरअलीखाँ से कहा जो उसके नीचे दबा हुआ मजबूर पड़ा था और जीवन की आशा छोड़ चुका था

जिन्न-मुझे आपसे किसी तरह की दुश्मनी नहीं और न मैं आपकी जान ही लिया चाहता हूँ, सिर्फ दो बात आपसे पूछा चाहता हूँ, लेकिन अगर इसमें किसी तरह के हीले और हुज्जत को जगह मिलेगी तो लाचार रहम भी न कर सकूँगा।

शेरअलीखाँ-वे कौन-सी दो बातें हैं?

जिन्न-एक तो जो कुछ मैं इस समय आपने पूर्वी, उसका जवाव एकदम सचसच दीजिये।